Classic Bollywood : रेखा की कामयाबी के पीछे छिपी एक मां के आंसुओं और धोखे की अनसुनी कहानी

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News India Live, Digital Desk: Classic Bollywood : रेखा... एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही आंखों के सामने एक खूबसूरत, रहस्यमयी और बेमिसाल अदाकारा की तस्वीर उभर आती है। उनकी अदाएं, उनकी आंखें, उनकी दमदार एक्टिंग... सब कुछ किसी जादू से कम नहीं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस चमकते सितारे को तराशने वाले हाथ किसके थे? वो कौन सी औरत थी, जिसने समाज के खिलाफ जाकर एक ऐसा फैसला लिया, जिसने हिंदी सिनेमा को उसकी सबसे बड़ी अदाकाराओं में से एक दे दी?

ये कहानी है रेखा की मां, पुष्पावल्ली की। एक ऐसी औरत, जो खुद अपने दौर की एक बहुत बड़ी स्टार थीं, लेकिन जिनकी अपनी कहानी दर्द और संघर्ष से भरी हुई थी।

जब एक्टिंग करना 'पाप' माना जाता था

पुष्पावल्ली का जन्म एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जहां उस जमाने में लड़कियों का फिल्मों में काम करना तो दूर, इस बारे में सोचना भी किसी पाप से कम नहीं माना जाता था। लेकिन पुष्पावल्ली ने इन दीवारों को तोड़ा और तेलुगु व तमिल सिनेमा में एक बड़ा नाम कमाया। वो खूबसूरत थीं, टैलेंटेड थीं और अपने दम पर इंडस्ट्री में अपनी जगह बना रही थीं।

एक अधूरा रिश्ता और गुमनामी का दर्द

इसी दौरान उनकी ज़िंदगी में तमिल सिनेमा के सुपरस्टार जेमिनी गणेशन आए। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया, लेकिन जेमिनी पहले से ही शादीशुदा थे। उन्होंने कभी भी पुष्पावल्ली से आधिकारिक तौर पर शादी नहीं की। इस रिश्ते से उनकी दो बेटियां हुईं- रेखा और राधा। लेकिन जेमिनी गणेशन ने कभी भी उन्हें अपना नाम नहीं दिया।

प्यार में मिले इस धोखे ने पुष्पावल्ली को आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़कर रख दिया। एक बड़ी स्टार होने के बावजूद, उन पर 'बिन ब्याही मां' होने का दाग लग गया और काम मिलना भी धीरे-धीरे कम हो गया।

एक मां की वो मजबूरी, जिसने बना दिया सुपरस्टार

घर चलाने और अपनी बेटियों का पेट पालने का संघर्ष जब हर दिन बड़ा होने लगा, तब पुष्पावल्ली ने वो फैसला लिया जिसने उनकी बेटी की पूरी ज़िंदगी बदल दी। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी, भानुरेखा (रेखा) को फिल्मों में काम करने के लिए मजबूर किया।

उस समय रेखा की उम्र महज़ 13-14 साल थी। वो पढ़ना चाहती थीं, एक आम बच्ची की तरह जीना चाहती थीं, लेकिन घर की ज़िम्मेदारियों के बोझ ने उन्हें समय से पहले ही बड़ा बना दिया। जिन कंधों पर किताबों का बोझ होना चाहिए था, उन पर पूरे परिवार को संभालने की ज़िम्मेदारी आ गई। उन्हें न चाहते हुए भी उन बी-ग्रेड फिल्मों में काम करना पड़ा, जो वो कभी नहीं करना चाहती थीं।

यह एक मां की क्रूरता नहीं, बल्कि उसकी मजबूरी थी। पुष्पावल्ली ने जो दर्द और धोखा झेला था, वो नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटियों को वो दिन देखना पड़े। उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को कुर्बान करके, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश की।

पुष्पावल्ली ही वो औरत थीं, जो रेखा को मुंबई लेकर आईं, उन्हें हिंदी सिखाई, डांस सिखाया और हर पल उनके साथ खड़ी रहीं। आज हम जिस 'रेखा' को जानते हैं, वो पुष्पावल्ली के उसी कठोर लेकिन मज़बूत फैसले की देन है। वह एक ऐसी गुमनाम ताकत थीं, जिनके त्याग और संघर्ष ने हिंदी सिनेमा को उसकी सबसे अनमोल अदाकारा दी।

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