Chhattisgarh Tourism Dantewada : वो रहस्यमयी पहाड़ी, जिसके 3000 फीट ऊंचे शिखर पर हज़ारों साल से बैठे हैं गणपति बप्पा

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News India Live, Digital Desk: Chhattisgarh Tourism Dantewada :  जरा सोचिए, घना जंगल, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और चारों तरफ बादलों का डेरा... और इन सबके बीच 3000 फीट ऊंची एक पहाड़ी की चोटी पर अचानक आपको भगवान गणेश की एक विशाल और प्राचीन मूर्ति के दर्शन हों। न कोई मंदिर, न कोई छत, बस खुले आसमान के नीचे बैठे गणपति। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में मौजूद ढोलकल पर्वत की हकीकत है, एक ऐसी जगह जो रोमांच और आस्था का अद्भुत संगम है।

यह कहानी है बैलाडीला की पहाड़ियों में छिपे एक ऐसे रहस्य की, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। स्थानीय लोग तो इस जगह के बारे में सदियों से जानते थे, लेकिन दुनिया की नजरों से यह तब तक ओझल थी, जब तक कि 1934 में एक अंग्रेज भूविज्ञानी यहां नहीं पहुंच गया। उसने अपनी किताब में इस मूर्ति का जिक्र किया, लेकिन फिर भी यह जगह गुमनामी के अंधेरों में खोई रही।

क्या है इस मूर्ति का रहस्य?

लगभग 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी, ग्रेनाइट पत्थर से बनी गणेश जी की यह मूर्ति अपने आप में बेहद खास है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह 10वीं या 11वीं सदी की है, जिसे नागवंशी राजाओं ने बनवाया था। उस जमाने में बिना किसी आधुनिक मशीन के, भला इतनी भारी मूर्ति को 3000 फीट की ऊंचाई पर कैसे पहुंचाया गया होगा? यह सवाल आज भी एक अनसुलझी पहेली है।

स्थानीय दंतेश्वरी माता के पुजारी इस जगह से जुड़ी एक और दिलचस्प कहानी सुनाते हैं। उनका मानना है कि इस मूर्ति का संबंध भगवान परशुराम से है। कथाओं के अनुसार, यहीं पर भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत टूट गया, जिसके बाद से वे 'एकदंत' कहलाए। कहते हैं कि इसी घटना की याद में यहां गणेश जी की यह प्रतिमा स्थापित की गई।

रोमांच से भरा है ढोलकल का सफर

ढोलकल तक पहुंचना किसी एडवेंचर से कम नहीं है। फरसपाल गांव से लगभग 16 किलोमीटर का पैदल पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता है। यह रास्ता घने जंगलों और घुमावदार पगडंडियों से होकर गुजरता है। इस ट्रेकिंग के दौरान आपको प्रकृति के खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं, जो आपकी सारी थकान मिटा देते हैं। और जब आप घंटों की चढ़ाई के बाद शिखर पर पहुंचते हैं और बादलों के बीच से गणपति बप्पा की उस अद्भुत छवि को देखते हैं, तो यकीन मानिए, वह एहसास शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

कुछ साल पहले यह मूर्ति अपनी जगह से रहस्यमयी तरीके से गायब हो गई थी और बाद में पहाड़ी के नीचे टुकड़ों में मिली थी। हालांकि, पुरातत्व विभाग ने इसे फिर से जोड़कर उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। यह जगह आज भी छत्तीसगढ़ के सबसे अनोखे और साहसिक पर्यटन स्थलों में से एक है, जो हर किसी को अपनी ओर खींचती है।

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