Chhath Puja 2025: संध्या अर्घ्य का महत्व और पूजन विधि, इन गलतियों से बचें
News India Live, Digital Desk : छठ पूजा, सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का महापर्व है। इस पर्व में उगते हुए सूर्य को तो सभी पूजते हैं, लेकिन छठ की खासियत है कि इसमें डूबते हुए सूर्य को भी पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ अर्घ्य दिया जाता है। यह हमें सिखाता है कि जो अस्त हो रहा है, उसका भी सम्मान करना चाहिए क्योंकि कल वह फिर उदय होगा। आइए, छठ पूजा और खासकर संध्या अर्घ्य के बारे में विस्तार से जानते हैं, ताकि इस महापर्व को हम सही विधि-विधान से मना सकें।
छठ पूजा: एक नज़र
छठ पूजा साल में दो बार मनाई जाती है, एक चैत्र महीने में और दूसरी कार्तिक महीने में। हालांकि, कार्तिक महीने में होने वाली छठ पूजा का विशेष महत्व है और इसे ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है, फिर 'खरना' होता है, तीसरे दिन 'संध्या अर्घ्य' और चौथे दिन 'उषा अर्घ्य' के साथ इसका समापन होता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु, परिवार की सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत के लिए रखा जाता है।
संध्या अर्घ्य का क्या महत्व है?
छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे खास होता है, जब व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसे 'संध्या अर्घ्य' कहा जाता है। मान्यता है कि इस समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए, संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा प्रसन्न होती हैं और व्रतियों को सौभाग्य का वरदान देती हैं। यह प्रकृति के प्रति आभार जताने का भी एक तरीका है।
संध्या अर्घ्य 2025 का समय:
इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025 को दिया जाएगा। सूर्यास्त का अनुमानित समय शाम 5 बजकर 41 मिनट के आसपास रहेगा। हालांकि, अलग-अलग शहरों में यह समय कुछ मिनट आगे-पीछे हो सकता है।
छठ पूजा की सामग्री और पूजन विधि
छठ पूजा की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है। इसके लिए कुछ खास चीजों की जरूरत होती है:
- पूजा सामग्री: बांस या पीतल का सूप, बांस की टोकरी, दीपक, दूध, जल, सिंदूर, गन्ना, हल्दी, मूली, अदरक का पौधा, नारियल, फल (सेब, केला, सिंघाड़ा) और सबसे महत्वपूर्ण 'ठेकुआ' जो गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनता है।
- पूजन विधि:
- तीसरे दिन व्रती दिन भर बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखते हैं।
- शाम को नदी, तालाब या किसी साफ जलाशय के किनारे घाट पर पूरा परिवार इकट्ठा होता है।
- बांस की टोकरी में सभी प्रसाद, फल और पूजा की सामग्री सजाई जाती है।
- व्रती पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूप में रखी सामग्री के साथ दूध और जल से सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
- अर्घ्य देने के बाद व्रती अपने घर वापस आ जाते हैं और अगली सुबह की तैयारी में लग जाते हैं।
छठ पूजा के दौरान न करें ये गलतियां
छठ का व्रत बहुत कठिन नियमों वाला होता है। इस दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए:
- साफ-सफाई: यह पर्व पवित्रता का प्रतीक है। पूजा की कोई भी सामग्री या जगह गंदी नहीं होनी चाहिए। प्रसाद बनाते समय और पूजा के दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
- प्रसाद का सम्मान: छठ का प्रसाद बहुत पवित्र माना जाता है। इसे बनाते समय या खाते समय जूठे हाथों से न छुएं और इसका अनादर न करें।
- तांबे का प्रयोग: सूर्य को अर्घ्य देते समय कभी भी तांबे के बर्तन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बांस के सूप का ही प्रयोग करें।
- शांत मन: यह आत्म-अनुशासन का पर्व है। इस दौरान किसी पर गुस्सा न करें और घर में लड़ाई-झगड़े का माहौल न बनाएं।
- बिस्तर पर न सोएं: व्रती को चार दिन तक जमीन पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए।
छठ पूजा हमें प्रकृति से जुड़ना और हर परिस्थिति में समान भाव रखना सिखाती है। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है।
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