गोलियों से छलनी सीना और अनफिट का टैग 26/11 के इस आयरनमैन की कहानी आपके रोंगटे खड़े कर देगी

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News India Live, Digital Desk : 26 नवंबर 2008 मुंबई की वो काली रात हममें से कोई नहीं भूल सकता। जब ताज होटल (Taj Hotel Mumbai) धुएं और चीख-पुकार से भरा था, तब वहां कुछ ऐसे फरिश्ते भी थे जो वर्दी पहनकर मौत से आंख मिचौली खेल रहे थे। उनमें से एक नाम ऐसा है, जिसकी कहानी सिर्फ उस रात की बहादुरी तक सीमित नहीं है, बल्कि उस रात के बाद शुरू हुई असली 'जंग' की कहानी है।

हम बात कर रहे हैं पूर्व मार्कोस कमांडो (MARCOS Commando) प्रवीन कुमार तेवतिया (Praveen Teotia) की।

ताज में मौत से वो आमना-सामना

उस रात जब आतंकियों ने ताज होटल पर कब्जा कर रखा था, प्रवीन अपनी टीम के पॉइंट मैन थे। यानी वो शख्स जो सबसे आगे चलता है। एक कमरे में छिपे चार आतंकवादियों से उनकी मुठभेड़ हुई। गोलियां बारिश की तरह बरस रही थीं। प्रवीन को एक नहीं, दो नहीं, बल्कि चार गोलियां लगीं।

एक गोली उनके कान के पास से गुजरी जिससे सुनने की क्षमता (Hearing Impairment) लगभग खत्म हो गई, और एक गोली उनके फेफड़े (Lung) को चीरती हुई निकल गई। खून से लथपथ होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने तब तक आतंकवादियों को उलझाए रखा जब तक बाकी बंधक और उनकी टीम सुरक्षित नहीं हो गई। उनकी इस बहादुरी ने उस रात करीब 150 लोगों की जान बचाई

शौर्य चक्र (Shaurya Chakra) से उन्हें सम्मानित भी किया गया, लेकिन कहानी यहाँ खत्म नहीं होती। असली परीक्षा तो अब शुरू होने वाली थी।

"अब तुम कुछ नहीं कर पाओगे"

अस्पताल के बिस्तर पर महीनों पड़े रहने के बाद जब प्रवीन वापस लौटे, तो उन्हें लगा कि सब उनका स्वागत करेंगे। लेकिन हुआ कुछ और ही। मेडिकल बोर्ड ने उन्हें "Unfit" करार दिया। उनसे कहा गया कि अब वो कमांडो ड्यूटी नहीं कर सकते। उन्हें नेवी के डेस्क जॉब (Desk Job) पर बिठा दिया गया, जैसे कोई पुरानी फाइल किनारे रख दी जाती है।

ज़रा सोचिए, जो इंसान 'देश का सबसे घातक कमांडो' था, उसे कह दिया गया कि तुम अब दौड़-भाग भी नहीं कर सकते। प्रवीन के लिए यह गोलियों से ज्यादा दर्दनाक था। अवसाद (Depression) ने उन्हें घेर लिया, लेकिन फौजी कभी घुटने नहीं टेकता।

ज़िद ऐसी कि मेडिकल साइंस भी हार जाए

प्रवीन ने तय किया कि वो अपनी किस्मत खुद लिखेंगे। उन्होंने अपने टूटे हुए शरीर को फिर से खड़ा करना शुरू किया। डॉक्टर कहते रहे कि फेफड़ा ख़राब है, दौड़ा नहीं जाएगा... लेकिन प्रवीन ने दौड़ना शुरू किया।

देखते ही देखते यह "अनफिट" फौजी, दुनिया की सबसे कठिन रेस 'Ironman Triathlon' का हिस्सा बन गया। आयरनमैन ट्रायथलॉन में लगातार तैरना, साइकिल चलाना और दौड़ना होता है—एक सामान्य इंसान के लिए भी यह लोहे के चने चबाने जैसा है। प्रवीन ने 2017 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित इस प्रतियोगिता को पूरा कर यह साबित कर दिया कि असली ताकत मांसपेशियों में नहीं, जिगर में होती है।

आज प्रवीन तेवतिया (Praveen Teotia Ironman) दुनिया भर में मैराथन दौड़ते हैं और 'आयरनमैन' के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि विकलांगता शरीर में नहीं, इंसान की सोच में होती है।

सीख जो हमें मिलती है

आज जब हम छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेते हैं, तो प्रवीन तेवतिया की कहानी हमें आईना दिखाती है। 26/11 (26/11 Anniversary) पर उन शहीदों को याद करने के साथ-साथ इस ज़िंदा शहीद (Living Legend) के जज्बे को भी सलाम करना चाहिए जिसने सिस्टम और मौत, दोनों को मात दी।

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