Birthday Special : ब्लॉकबस्टर फिल्म जो दिलीप कुमार ने छोड़ी और वो हिस्ट्री बन गई

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 News India Live, Digital Desk : आज भारतीय सिनेमा के 'अभिनय सम्राट' यानी दिलीप कुमार (Dilip Kumar) साहब का जन्मदिन है। आज यानी 11 दिसंबर को अगर वो हमारे बीच होते, तो अपना 103वां जन्मदिन मना रहे होते।

यूँ तो उन्होंने अपनी जिंदगी में गिनी-चुनी फिल्में ही कीं, लेकिन जितनी भी कीं, वो सब की सब एक्टिंग का स्कूल मानी जाती हैं। 'मुग़ल-ए-आज़म' हो या 'देवदास', उनकी छाप कोई मिटा नहीं सकता। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बॉलीवुड की दो सबसे ऐतिहासिक फ़िल्में 'शोले' और ‘ज़ंजीर’ पहले दिलीप साहब की झोली में गिरी थीं?

सोचिए, अगर उन्होंने उन फिल्मों के लिए 'हाँ' कह दी होती, तो शायद अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार का करियर ग्राफ वैसा नहीं होता जैसा आज है। आइये, आज उनके जन्मदिन पर इन दिलचस्प किस्सों को याद करते हैं।

जब 'शोले' के ठाकुर बनने से किया इनकार

रमेश सिप्पी की 'शोले' (Sholay) न केवल भारत की, बल्कि दुनिया की बेहतरीन फिल्मों में गिनी जाती है। इसमें 'ठाकुर बलदेव सिंह' का किरदार अमर हो गया। लेकिन यह रोल पहले संजीव कुमार के लिए नहीं, बल्कि दिलीप कुमार के लिए लिखा गया था।

  • क्यों नहीं की फिल्म? ख़बरों की मानें तो दिलीप साहब को लगा कि ठाकुर के रोल में ज्यादा कुछ करने (Acting variations) के लिए नहीं है, क्योंकि फिल्म में ज्यादा फोकस गब्बर और जय-वीरू पर था। उन्हें लगा कि एक बिना हाथों वाले किरदार में उनकी एक्टिंग कला दब जाएगी। बाद में जब फिल्म रिलीज हुई और संजीव कुमार ने कमाल कर दिया, तो शायद उन्हें थोड़ा मलाल जरूर रहा होगा।

'ज़ंजीर' ठुकराई और अमिताभ बन गए सुपरस्टार

यह किस्सा तो और भी चौंकाने वाला है। फिल्म 'ज़ंजीर' (Zanjeer), जिसने अमिताभ बच्चन को "एंग्री यंग मैन" बनाया और उन्हें फ्लॉप हीरो से सुपरस्टार बना दिया, वह रोल पहले दिलीप कुमार के लिए लिखा गया था।

  • इनकार की वजह: कहा जाता है कि दिलीप कुमार को लगा कि इस फिल्म का हीरो 'एक-आयामी' (One-dimensional) है, यानी उसमें कोई इमोशनल उतार-चढ़ाव नहीं है, बस वो गुस्से में है। उन्हें किरदार में वो गहराई नज़र नहीं आई जो उन्हें पसंद थी। उनके इनकार के बाद यह रोल बिग बी को मिला, और बाकी सब इतिहास है!

'प्यासा' और 'बैजू बावरा' भी लिस्ट में हैं

सिर्फ शोले या ज़ंजीर ही नहीं, गुरु दत्त की क्लासिक फिल्म 'प्यासा' (Pyaasa) भी पहले दिलीप कुमार को ही ऑफर हुई थी। यहां तक कि 'संगम' और 'बैजू बावरा' के लिए भी वो पहली पसंद थे।

यह उनकी शख्सियत ही थी कि जो रोल उन्होंने छोड़ दिए, वो दूसरों के करियर के लिए मील का पत्थर बन गए। दिलीप साहब मानते थे कि वो भीड़ में शामिल होने के लिए फिल्में नहीं करते, बल्कि वो सिर्फ़ उन्हीं कहानियों का हिस्सा बनते हैं जो उनके दिल को छू जाएं। शायद इसीलिए वो 'क्वांटिटी' में नहीं, 'क्वालिटी' में विश्वास रखते थे।

आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी छोड़ी हुई फ़िल्में और उनकी की हुई फ़िल्में, दोनों ही सिनेमा के छात्रों के लिए किसी केस स्टडी से कम नहीं हैं। हैप्पी बर्थडे, दिलीप साहब!

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