Bihar Politics : सीवान का असली किंग कौन? तेजस्वी के एक फैसले पर टिकी है शहाबुद्दीन परिवार की किस्मत

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News India Live, Digital Desk : बिहार की राजनीति में कुछ सीटें ऐसी हैं, जो सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि 'पहचान' और 'वर्चस्व' की लड़ाई लड़ती हैं। सीवान ऐसी ही एक सीट है, जिसका नाम लेते ही एक ही शख्स का चेहरा सामने आता था - मरहूम मोहम्मद शहाबुद्दीन। दशकों तक शहाबुद्दीन सीवान की राजनीति का दूसरा नाम रहे, और उनका प्रभाव ऐसा था कि उनके एक इशारे पर हार-जीत का फैसला हो जाता था।

लेकिन अब, शहाबुद्दीन के बिना सीवान की सियासत एक बड़े दोराहे पर खड़ी है। और इस चौराहे के केंद्र में हैं उनके बेटे ओसामा शहाब, जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और तेजस्वी यादव, शहाबुद्दीन के इस 'उत्तराधिकारी' पर दांव लगाएंगे?

RJD के लिए 'मजबूरी' भी, 'जरूरी' भी

सीवान की राजनीति का पूरा ताना-बाना RJD के पारंपरिक एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर टिका है। शहाबुद्दीन इस समीकरण के सबसे बड़े और सबसे मजबूत 'आइकॉन' थे, खासकर मुस्लिम वोटरों के बीच उनकी पकड़ बेजोड़ थी।

  • विरासत का दावा: ओसामा शहाब लगातार इलाके में सक्रिय रहकर और सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि अपने पिता की राजनीतिक विरासत के असली हकदार वही हैं।
  • RJD की दुविधा: RJD के लिए यह फैसला 'सांप-छछूंदर' वाली स्थिति जैसा है।
    • अगर RJD ओसामा को टिकट देती है, तो बीजेपी और एनडीए इसे 'जंगलराज की वापसी' और 'बाहुबली राजनीति' का प्रतीक बताकर हमला करेगी।
    • और अगर RJD ओसामा को टिकट नहीं देती, तो शहाबुद्दीन के प्रति निष्ठा रखने वाला एक बड़ा मुस्लिम वोट बैंक नाराज हो सकता है। यह वोट बैंक या तो किसी दूसरे उम्मीदवार की तरफ खिसक सकता है या फिर बिखर सकता है, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा।

पिछले चुनावों का सबक

यह डर बेवजह नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में ओसामा की मां, हीना शहाब ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में उन्हें हार तो मिली, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि शहाबुद्दीन परिवार के पास आज भी अपना एक समर्पित वोट बैंक है, जो RJD से कटकर भी उनके साथ खड़ा रह सकता है। इस वोट बंटवारे ने ही एनडीए उम्मीदवार की जीत का रास्ता साफ किया था।

NDA की नजर, 'मौके' पर है

एनडीए गठबंधन (बीजेपी-जेडीयू-लोजपा) इस पूरी स्थिति पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए है। उनकी पूरी रणनीति इसी पर टिकी होगी कि RJD के वोट बैंक में कैसे सेंध लगाई जाए। अगर RJD ओसामा को उम्मीदवार बनाती है, तो NDA इसे 'डरावने अतीत' की वापसी के तौर पर पेश करेगा। और अगर नहीं बनाती, तो NDA इस मौके का फायदा उठाकर नाराज मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश कर सकता है।

सीवान का 2025 का चुनाव सिर्फ एक विधायक चुनने का चुनाव नहीं होगा। यह इस बात का लिटमस टेस्ट होगा कि क्या शहाबुद्दीन की विरासत आज भी उतनी ही मजबूत है, या फिर सीवान की जनता अब उस 'अतीत' से आगे बढ़कर 'बदलाव' के लिए तैयार है। और इस पूरे खेल का रिमोट कंट्रोल कहीं न कहीं तेजस्वी यादव के हाथों में है, जिनका एक फैसला सीवान का अगला सियासी भविष्य तय करेगा।

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