Bihar Politics : वोटर लिस्ट से 3.5 करोड़ नाम होंगे डिलीट बिहार कांग्रेस अध्यक्ष का दावा, सियासी तूफान की आहट

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News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में मतदाता सूचियों में कथित तौर पर हेरफेर को लेकर नया बवाल मच गया है। बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने दावा किया है कि राज्य की वोटर लिस्ट से कोई 35 लाख नहीं, बल्कि चौंकाने वाली संख्या में 3.5 करोड़ नाम हटाने की तैयारी चल रही है! यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि अगर ऐसा होता है, तो राज्य में राजनीतिक भूचाल आना तय है, क्योंकि इससे चुनावों के नतीजे पर गहरा असर पड़ सकता है।

कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने सीधे-सीधे सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू को निशाने पर लिया है। उनका आरोप है कि भाजपा और जदयू, जो अभी सरकार में हैं, 'वोट काटने की योजना' पर काम कर रहे हैं। उनका दावा है कि इन 3.5 करोड़ नामों को डिलीट करने का सीधा मकसद एक विशेष वोट बैंक को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखना है। सिंह ने अपनी बात को बल देते हुए कहा कि कांग्रेस और इंडिया (INDIA) गठबंधन के सभी नेता जल्द ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर इस संवेदनशील मुद्दे पर विस्तृत बातचीत करेंगे। उनका कहना है कि इस 'फर्जीवाड़े' को रोकने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगी दल हरसंभव प्रयास करेंगे।

हालांकि, जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बयान को 'बेतुका' और 'सत्य से कोसों दूर' बताया। रंजन प्रसाद ने दावा किया कि बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और मुख्य सचिव लगातार चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार काम कर रहे हैं, और किसी भी तरह की 'कटौती' की कोई बात नहीं है। उनके अनुसार, अगर वोटर लिस्ट में कहीं भी किसी व्यक्ति का नाम हटाया गया है या जोड़ा गया है, तो वह केवल चुनाव आयोग के मानदंडों और विधिवत सत्यापन के बाद ही किया जाता है। उन्होंने इन दावों को विपक्ष की घबराहट और चुनावी हार के डर से उत्पन्न राजनीतिक पैंतरेबाजी करार दिया।

मतदाता सूची से नामों को हटाने या जोड़ने की प्रक्रिया हमेशा चुनाव आयोग के नियमों और दिशानिर्देशों के तहत होती है, जिसमें मृत मतदाताओं के नाम हटाना, डबल एंट्री हटाना या अन्य वैध कारण शामिल होते हैं। लेकिन 3.5 करोड़ जैसे बड़े आंकड़े पर राजनीति गरमाना स्वाभाविक है, खासकर तब जब राज्य में अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव करीब हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष अपने दावों को कैसे साबित करता है और सत्तारूढ़ गठबंधन इस बड़े आरोप का कैसे जवाब देता है। यह मुद्दा बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को और गरमा सकता है।

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