वोटिंग से ठीक पहले प्रशांत किशोर को तगड़ा झटका, मुंगेर से जन सुराज प्रत्याशी संजय सिंह BJP में शामिल

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News India Live, Digital Desk :  बिहार में बदलाव की राजनीति का नारा लेकर निकले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले एक बड़ा झटका लगा है. मुंगेर विधानसभा सीट से उनकी पार्टी 'जन सुराज' के घोषित उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने अचानक पाला बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया.

यह घटनाक्रम न केवल प्रशांत किशोर के 'जन सुराज' अभियान के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी है, बल्कि यह भी दिखाता है कि बिहार की राजनीति में आखिरी समय पर कैसे समीकरण बदल जाते हैं. संजय सिंह को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने पार्टी की सदस्यता दिलाई.

कौन हैं संजय सिंह, और क्यों छोड़ी 'जन सुराज'?

संजय कुमार सिंह मुंगेर में एक बड़ा और जाना-पहचाना नाम हैं. वह 2010 में आरजेडी के टिकट पर मुंगेर से विधायक रह चुके हैं. इस बार उन्होंने प्रशांत किशोर के 'जन सुराज' अभियान पर भरोसा जताया था और मुंगेर से उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने की पूरी तैयारी कर चुके थे. पूरे शहर में उनके पोस्टर और बैनर भी लग गए थे.

हालांकि, बीजेपी में शामिल होने के बाद संजय सिंह ने प्रशांत किशोर पर सीधे तौर पर कोई आरोप तो नहीं लगाया, लेकिन उनके इस कदम ने 'जन सुराज' की चुनावी तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. माना जा रहा है कि संजय सिंह को बीजेपी से कोई बड़ा आश्वासन मिला है, जिसके चलते उन्होंने वोटिंग से ठीक पहले इतना बड़ा फैसला लिया.

प्रशांत किशोर के 'बदलाव' पर बीजेपी का 'मास्टरस्ट्रोक'

प्रशांत किशोर लगातार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, दोनों पर हमलावर रहे हैं और अपनी पार्टी को एक तीसरे और बेहतर विकल्प के रूप में पेश कर रहे थे. लेकिन वोटिंग से ठीक पहले अपने ही एक बड़े उम्मीदवार का इस तरह पार्टी छोड़कर चले जाना, उनकी विश्वसनीयता पर एक बड़ा झटका है.

यह घटना बीजेपी के लिए एक रणनीतिक जीत की तरह है. एक तरफ जहाँ उसने अपने विरोधी खेमे के एक मज़बूत उम्मीदवार को तोड़ लिया, वहीं दूसरी तरफ यह संदेश भी दिया कि 'जन सुराज' का कुनबा अभी इतना मज़बूत नहीं है कि वह अपने नेताओं को एकजुट रख सके.

अब मुंगेर में चुनावी मुकाबला और भी ज़्यादा रोचक हो गया है. संजय सिंह के बीजेपी में जाने से पार्टी को उस सीट पर एक मज़बूत और स्थानीय चेहरा मिल गया है. इसका असर पहले चरण की वोटिंग पर क्या पड़ेगा, यह तो नतीजे ही बताएंगे, लेकिन इतना तो तय है कि इस एक घटना ने बिहार के सियासी पारे को और भी ज़्यादा गरमा दिया है.

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