अरावली पर संग्राम अरुण चतुर्वेदी का बड़ा दावा 2002 में गहलोत जी ने ही बोया था बर्बादी का बीज

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News India Live, Digital Desk : राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों को लेकर जो बवाल चल रहा है, वह थमने का नाम नहीं ले रहा। मामला सिर्फ अवैध खनन (Mining) का नहीं है, बल्कि अब यह लड़ाई "तू-तू, मैं-मैं" पर आ गई है। बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने एक ऐसा दावा किया है जिसने राजस्थान की राजनीति में खलबली मचा दी है।

अरुण चतुर्वेदी ने सीधे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधा है और आरोप लगाया है कि अरावली की पहाड़ियों का सीना चीरने का रास्ता उन्होंने ही खोला था, वो भी आज से 22 साल पहले।

आखिर 2002 में ऐसा क्या हुआ था?

अरुण चतुर्वेदी का कहना है कि जब साल 2002 में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने एक विवादित सर्कुलर (आदेश) जारी किया था। बीजेपी का आरोप है कि इस आदेश के जरिए राजस्व रिकॉर्ड (Revenue Records) में 'पहाड़' की परिभाषा को ही बदल दिया गया।

सरल भाषा में समझें तो, जो जमीन कागजों में "गैर मुमकिन पहाड़" दर्ज थी, उसे बदलने की कोशिश की गई ताकि वहां खनन और निर्माण कार्य हो सके। चतुर्वेदी का कहना है कि गहलोत सरकार के उस फैसले के कारण ही माफियाओं को पहाड़ों में घुसने का मौका मिला और आज अरावली का यह हाल हो गया है।

अरावली पर किसका हक?
चतुर्वेदी ने यह भी याद दिलाया कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने गोदावर्मन मामले में साफ कर दिया था कि "वन" (Forest) की परिभाषा क्या होगी। इसके बावजूद 2002 में नियमों के साथ कथित छेड़छाड़ की गई।

बीजेपी का कहना है कि आज कांग्रेस और अशोक गहलोत अरावली को लेकर "घड़ियाली आंसू" बहा रहे हैं, जबकि असलियत यह है कि जब उनके हाथ में कमान थी, तो उन्होंने संरक्षण के बजाय राजस्व (कमाई) पर ज्यादा ध्यान दिया।

जनता पूछ रही है सवाल
अरावली राजस्थान के लिए जीवन रेखा है। यह थार के रेगिस्तान को बढ़ने से रोकती है। लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह से पहाड़ गायब हुए हैं, वह डराने वाला है। अब जब नेता एक-दूसरे पर पुराने कागजों का हवाला देकर आरोप लगा रहे हैं, तो आम जनता बस यही जानना चाहती है गलती किसकी भी हो, हमारे पहाड़ बचेंगे कैसे?

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