आदिवासी इलाकों में जबरन धर्मांतरण पर लगी रोक? जानिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले का क्या होगा असर

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News India Live, Digital Desk: छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में प्रलोभन और धोखे से कराए जा रहे कथित धार्मिक धर्मांतरण के संवेदनशील मुद्दे पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म चुनने और उसका पालन करने की पूरी आजादी है, लेकिन अगर यह धर्मांतरण किसी दबाव, धोखे, जबरदस्ती या लालच के आधार पर किया जाता है, तो यह पूरी तरह से अवैध और गैर-कानूनी है।

यह फैसला जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की सिंगल बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से जुड़ा हुआ था, जहां आदिवासी समुदाय के कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि ईसाई मिशनरियों द्वारा उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन (जैसे मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं या पैसा) देकर और डरा-धमकाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। मामले में दो याचिकाएं दायर की गई थीं। एक याचिका में प्रलोभन से हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जबकि दूसरी याचिका पादरी डी. एस. सायमन और उनकी पत्नी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने खुद पर लगे आरोपों को खारिज करने की मांग की थी।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कई बड़ी और महत्वपूर्ण बातें कहीं:

  • आस्था चुनना मौलिक अधिकार: कोर्ट ने माना कि संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से अपनी आस्था बदल सकता है।
  • धोखा और लालच 'अवैध': लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिकार "जबरदस्ती, धोखाधड़ी, या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण" की इजाजत नहीं देता। अगर धर्म परिवर्तन के लिए किसी भी तरह के धोखे, लालच या डर का इस्तेमाल किया गया है, तो इसे अवैध माना जाएगा।
  • जांच को दी हरी झंडी: कोर्ट ने धर्मांतरण के आरोपों की पुलिस जांच को सही ठहराया और पादरी दंपति की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि इन आरोपों की सच्चाई का पता लगाना जांच एजेंसियों का काम है।

इस फैसले को आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण की दिशा में एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है। यह फैसला उन ताकतों के लिए एक कड़ा संदेश है जो भोले-भाले आदिवासियों को लालच देकर या डराकर उनकी आस्था को बदलने की कोशिश करते हैं।

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