Ayurveda : महर्षि च्यवन की कृपा से हुआ च्यवनप्राश का आविष्कार, जानें इसके पीछे की रोचक कहानी

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News India Live, Digital Desk:  Ayurveda : च्यवनप्राश, आयुर्वेद की एक अनमोल देन है, जो सदियों से स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए उपयोग किया जाता रहा है। यह न केवल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि कायाकल्प और स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है। च्यवनप्राश के नाम और इसके फायदों से लगभग हर कोई परिचित है, लेकिन बहुत कम लोग इसके आविष्कार से जुड़ी रोचक कहानी और महर्षि च्यवन से इसके संबंध के बारे में जानते हैं।

यह चमत्कारी औषधि महर्षि च्यवन की तपस्या और उन पर हुई कृपा का परिणाम है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, महर्षि च्यवन भृगु वंश से संबंधित थे। महाभारत और ऋग्वेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में उनका उल्लेख मिलता है, जहां उन्हें भृगु वरुणि नाम से भी पुकारा गया है। एक कथा के अनुसार, जब उनके पिता भृगु की पत्नी गर्भवती थीं, तो एक राक्षस ने उन्हें परेशान किया। भय के कारण उनके गर्भस्थ शिशु समय से पूर्व ही गिर पड़े। यह वही दिव्य शिशु थे जो बाद में च्यवन ऋषि के रूप में जाने गए।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब महर्षि च्यवन वन में अपनी तपस्या कर रहे थे, तो युवा अवस्था में उनका शरीर अत्यंत जर्जर और कमजोर हो गया था। उस समय राजा शर्याति अपनी पुत्री सुकन्या और सेना के साथ वन में भ्रमण के लिए आए। संयोगवश, सुकन्या ने झाड़ियों के बीच दो चमकती हुई वस्तुएं देखीं, जो असल में महर्षि च्यवन की आंखें थीं। अनजाने में, उसने अपनी उत्सुकता में उन पर कोई नुकीली चीज से वार कर दिया, जिससे ऋषि की तपस्या भंग हो गई। क्रोधित महर्षि ने राजा की पूरी सेना को मूर्छित कर दिया। जब राजा को घटना का पता चला तो उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और क्षमा मांगी। ऋषि ने राजा के समक्ष शर्त रखी कि यदि उनकी पुत्री सुकन्या उनसे विवाह करें, तभी वे सेना को मुक्त करेंगे। राजा की अनुमति के पश्चात, सुकन्या ने ऋषि से विवाह किया और अत्यंत भक्ति और निष्ठा के साथ उनकी सेवा की।

सुकन्या की इस अनन्य भक्ति और देवताओं के प्रति उनकी निष्ठा से स्वर्ग के चिकित्सक, देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार अत्यधिक प्रसन्न हुए। अश्विनीकुमारों ने प्रसन्न होकर च्यवन ऋषि को एक विशेष औषधि प्रदान की। यह औषधि जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का एक अनूठा मिश्रण थी, जिसका सेवन करके महर्षि च्यवन का जर्जर और वृद्ध शरीर पुनः यौवन, शक्ति और तेज से भर गया। यहीं से इस दिव्य औषधि को 'च्यवनप्राश' के नाम से जाना जाने लगा। यह आयुर्वेद की वह देन है जो आज भी हमें स्वास्थ्य, शक्ति और दीर्घायु प्रदान करती है।

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