Google, Microsoft के बाद अब Amazon का एक्शन: इज़राइल के खिलाफ बोलना पड़ा भारी, फिलिस्तीनी इंजीनियर सस्पेंड
Google, Microsoft, Amazon... ये नाम हमारी रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। हम इनकी सर्विस इस्तेमाल करते हैं, इनके प्लेटफॉर्म पर शॉपिंग करते हैं। लेकिन आजकल ये बड़ी-बड़ी टेक कंपनियां एक बिल्कुल अलग वजह से सुर्खियों में हैं - और वो वजह है इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर बोलने वाले अपने ही कर्मचारियों पर सख्त एक्शन लेना।
अब इस श्रृंखला में एक नया नाम जुड़ गया है, अमेज़न का।
क्या है यह पूरा मामला?
ताज़ा मामला दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़न से जुड़ा है। खबरों के मुताबिक, अमेज़न ने अपने एक फ़िलिस्तीनी मूल के इंजीनियर को निलंबित कर दिया है। आरोप है कि इंजीनियर ने सोशल मीडिया या कंपनी के आंतरिक मंच पर इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष को लेकर आवाज़ उठाई थी और फ़िलिस्तीन के समर्थन में बात की थी।
कंपनी ने इसे अपने नियमों का उल्लंघन मानते हुए उसके ख़िलाफ़ यह कार्रवाई की, जिससे एक बार फिर 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' पर बड़ी बहस छिड़ गई है।
यह कोई पहली घटना नहीं है
यह कहानी सिर्फ अमेज़न की नहीं है। यह उस ट्रेंड का हिस्सा है जो पिछले कुछ समय से सिलिकॉन वैली (अमेरिका की टेक इंडस्ट्री) में देखने को मिल रहा है।
- इससे पहले, Googleने अपने उस इंजीनियर को बीच इवेंट में ही नौकरी से निकाल दिया था, जो कंपनी के एक बड़े अधिकारी की प्रेजेंटेशन के दौरान खड़े होकर फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाने लगा था।
- Microsoft पर भी ऐसे ही आरोप लग चुके हैं कि वह फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले कर्मचारियों की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा है।
आखिर ये कंपनियां ऐसा क्यों कर रही हैं?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ये कंपनियाँ, जो हमेशा 'ओपन कल्चर' और 'बोलने की आज़ादी' की बात करती हैं, वो इस मुद्दे पर इतनी सख्त क्यों हो गई हैं?
इसके पीछे दो बड़ी वजहें हो सकती हैं:
- बिजनेस और विवाद से दूरी: इज़राइल-फिलिस्तीन का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील और विवादित है। ये बड़ी कंपनियां किसी भी तरह के विवाद में पड़कर अपने बिजनेस को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहतीं। वे किसी भी एक पक्ष का साथ देती हुई नहीं दिखना चाहतीं।
- कंपनी की पॉलिसी: इन कंपनियों की सख्त नीतियां होती हैं, जिनके मुताबिक कोई भी कर्मचारी कंपनी के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल राजनीतिक प्रचार या ऐसे काम के लिए नहीं कर सकता जिससे ऑफिस का माहौल खराब हो।
तो क्या नौकरी बचाने के लिए चुप रहना होगा?
यह घटनाएं एक बड़ी बहस को जन्म दे रही हैं। एक तरफ हैं कंपनी के नियम और बिज़नेस, तो दूसरी तरफ हैं कर्मचारी, जिन्हें लगता है कि एक मानवीय संकट पर अपनी आवाज़ उठाना उनका अधिकार है।
इस संघर्ष ने बड़ी कंपनियों को एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया है जहाँ उन्हें कारोबार और अपने कर्मचारियों की 'आवाज़ की आज़ादी' के बीच एक मुश्किल चुनाव करना पड़ रहा है। फ़िलहाल, ऐसा लग रहा है कि इन कंपनियों के लिए उनका कारोबार ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
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