2024 भारतीय रुपये के लिए चुनौतीपूर्ण रहा, जिसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसका प्रदर्शन कमजोर हुआ। वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती और भारत की आर्थिक सुस्ती ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया। इस साल की शुरुआत में 83.19 प्रति डॉलर पर था, जो 27 दिसंबर तक 3% गिरकर 85.59 प्रति डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, 2025 में रुपये के प्रदर्शन में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
2024 में रुपये पर क्या पड़ा असर?
वैश्विक कारकों का प्रभाव
- रूस-यूक्रेन युद्ध:
- युद्ध से जुड़ी भू-राजनीतिक अस्थिरता ने वैश्विक व्यापार और निवेश को प्रभावित किया।
- पश्चिम एशिया का संकट:
- लाल सागर में व्यापार व्यवधान और तेल आपूर्ति में कमी ने रुपये पर दबाव बढ़ाया।
- वैश्विक केंद्रीय बैंक नीतियां:
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व सहित प्रमुख केंद्रीय बैंकों की नीतियों ने डॉलर को मजबूत किया, जिससे उभरते बाजारों की मुद्राएं प्रभावित हुईं।
घरेलू कारक
- कच्चे तेल पर निर्भरता:
- भारत का आयातित कच्चे तेल पर निर्भर होना डॉलर की मांग को बढ़ाता है।
- व्यापार घाटा:
- बढ़ते व्यापार घाटे ने रुपये को और कमजोर किया।
पिछले दो महीनों में रुपये में बड़ी गिरावट
अक्टूबर-दिसंबर में तेज गिरावट
- 10 अक्टूबर को रुपया 84 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया।
- 19 दिसंबर को यह 85.80 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।
- 27 दिसंबर को एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई।
अन्य मुद्राओं के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन
- जापानी येन:
- रुपया येन के मुकाबले 8.7% मजबूत हुआ।
- 1 जनवरी को 58.99 प्रति 100 येन से 27 दिसंबर को 54.26 प्रति 100 येन तक पहुंचा।
- यूरो:
- 27 अगस्त के बाद से यूरो के मुकाबले रुपया 5% मजबूत हुआ।
- 93.75 प्रति यूरो से 27 दिसंबर को 89.11 प्रति यूरो तक आया।
आरबीआई के प्रयास: रुपये को स्थिर करने की पहल
हस्तक्षेप और उपाय
- विदेशी मुद्रा भंडार:
- सितंबर 2024 के 704.89 बिलियन डॉलर के उच्चतम स्तर से गिरकर 20 दिसंबर तक 644.39 बिलियन डॉलर पर आ गया।
- डॉलर की आपूर्ति:
- आरबीआई ने बाजार में डॉलर की आपूर्ति बढ़ाकर रुपये को स्थिर रखने की कोशिश की।
- मुद्रा प्रबंधन:
- गैर-अमेरिकी मुद्राओं की सराहना का प्रभाव विदेशी मुद्रा भंडार में परिलक्षित हुआ।
विशेषज्ञों की राय
आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉकब्रोकर्स के नवीन माथुर के अनुसार, आरबीआई ने रुपये की गिरावट रोकने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप किया है, जो विदेशी मुद्रा भंडार के उपयोग से स्पष्ट होता है।
चीन की मंदी का प्रभाव
गिरती जीडीपी और भारतीय व्यापार
- चीन की जीडीपी वृद्धि 4.8% तक गिरने से भारतीय निर्यात की मांग पर असर पड़ा।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और लाल सागर संकट ने व्यापार संतुलन बिगाड़ा।
वैश्विक व्यापारिक तनाव
पश्चिम एशिया में तनाव और अन्य भू-राजनीतिक मुद्दों ने न केवल भारत, बल्कि अन्य उभरते बाजारों की अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित किया।
रुपये के लिए 2025 की उम्मीदें
डॉलर का दबदबा कम होने की संभावना
- विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार धीमी हो सकती है, जिससे डॉलर कमजोर होगा।
- इसका फायदा उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को मिलेगा, जिसमें रुपया भी शामिल है।
घरेलू नीतियां
- भारत के आर्थिक सुधार, आरबीआई के सक्रिय हस्तक्षेप और निर्यात में बढ़ोतरी से रुपये को मजबूती मिल सकती है।
तेल की कीमतों में स्थिरता
- यदि वैश्विक तेल कीमतें स्थिर रहती हैं, तो भारत का व्यापार घाटा कम हो सकता है, जिससे रुपये पर दबाव घटेगा।