चाँद पर झंडा, बजट में दुनिया से पीछे: क्या ISRO के सपनों को लगेंगे पंख?
एक तरफ़ हमारा चंद्रयान चाँद पर घूम रहा है, सूरज को समझने के लिए आदित्य L1 मिशन आसमान में है और गगनयान इंसानों को अंतरिक्ष में ले जाने की तैयारी कर रहा है। पूरी दुनिया इसरो (ISRO) का लोहा मान रही है, लेकिन जब हम अपने स्पेस बजट को देखते हैं, तो एक अलग ही कहानी सामने आती है। आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि अंतरिक्ष की रेस में भारत का खर्च दुनिया के कई बड़े देशों के मुक़ाबले बहुत ही कम है।
हम कहाँ खड़े हैं दुनिया में?
एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, दुनिया में स्पेस पर सबसे ज़्यादा पैसा ख़र्च करने के मामले में भारत सातवें नंबर पर है। 2023 में हमारा कुल स्पेस बजट क़रीब 12,544 करोड़ रुपये था। यह सुनने में रक़म बहुत बड़ी लगती है, लेकिन जब हम इसकी तुलना दुनिया के सबसे बड़े खिलाड़ी अमेरिका से करते हैं, तो ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ नज़र आता है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA) का बजट हमारे बजट से लगभग 16 गुना ज़्यादा है!
हमसे आगे सिर्फ़ अमेरिका ही नहीं, बल्कि चीन, जापान, रूस, फ़्रांस और जर्मनी जैसे देश भी हैं जो अपनी स्पेस एजेंसियों पर हमसे कहीं ज़्यादा पैसा लगा रहे हैं। चीन तो इस मामले में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और उसका बजट भी हमारे मुक़ाबले क़रीब सात गुना ज़्यादा है।
कम पैसों में बड़े कमाल
ये आँकड़े हमें यह भी बताते हैं कि हमारा ISRO कितने कम संसाधनों में कितने बड़े-बड़े कमाल कर रहा है। चंद्रयान-3 मिशन का बजट हॉलीवुड की कई फ़िल्मों से भी कम था, लेकिन सफलता दुनिया की सबसे बड़ी थी। हमारे वैज्ञानिक और इंजीनियर जुगाड़ और काबिलियत से वो कर दिखाते हैं, जिसे करने में दूसरे देश अरबों-खरबों डॉलर ख़र्च कर देते हैं।
सरकार अब इस क्षेत्र पर ज़्यादा ध्यान दे रही है। पिछले दस सालों में इसरो के ख़र्च में 122% की बढ़ोतरी हुई है। यह एक अच्छा संकेत है और दिखाता है कि सरकार समझ रही है कि आने वाला वक़्त स्पेस टेक्नोलॉजी का है। इसरो का ज़्यादातर पैसा नए रॉकेट बनाने, सैटेलाइट्स तैयार करने और नए मिशनों की रिसर्च पर ख़र्च होता है।
लेकिन सवाल यही है कि अगर हमें चीन और अमेरिका जैसे देशों की बराबरी करनी है, तो क्या इतने बजट से काम चलेगा?
आने वाले मिशन, जैसे कि गगनयान, मंगलयान-2 और चाँद पर बेस बनाने की योजना, बहुत ज़्यादा ख़र्चीले होने वाले हैं। ऐसे में सरकार को इसरो का बजट बढ़ाने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। अच्छी बात यह है कि अब सरकार ने स्पेस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों के आने के दरवाज़े भी खोल दिए हैं, जिससे उम्मीद है कि नया निवेश आएगा और इसरो पर से कुछ बोझ कम होगा।
भारत भले ही आज बजट में सातवें नंबर पर हो, लेकिन हौसले और क़ाबिलियत में हम किसी से कम नहीं। बस ज़रूरत है अपने वैज्ञानिकों के सपनों को उड़ान देने के लिए थोड़ा और खुला आसमान और मज़बूत पंख देने की।
--Advertisement--