पति के बांझ कहने पर पत्नी ने की आत्महत्या, पति को सुनाई 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा

नैनीताल, 18 जून (हि.स.)। जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुबीर कुमार की अदालत ने शादी के 6 वर्ष से पहले पत्नी को बांझ बताकर उत्पीड़न करने के दोषी पति को 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही न्यायालय ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी भी की है।

जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार शर्मा ने बताया कि 4 जनवरी 2020 की शाम साढ़े पांच बजे सरियाताल झील में एक महिला का शव मिला था। मृतका की पहचान 28 वर्षीय मीता देवी के रूप में हुई। उसकी शादी को संजय कुमार पुत्र आनंद कुमार निवासी ग्राम चारखेत से हुए 5 वर्ष, 9 माह 28 दिन हुए थे। इस मामले में मीता के भाई ने मल्लीताल कोतवाली में 5 जनवरी को तहरीर देकर बताया कि मीता की शादी 7 मार्च 2014 को संजय से हुई थी। उसकी सास दीपा देवी, ससुर आनंद कुमार, पति संजय कुमार, देवर अजय कुमार, विजय व संतोष उसका दहेज के लिए उत्पीड़न करते थे और उसे बच्चा न होने के लिए बांझ कहकर प्रताड़ित करते थे। दहेज के कारण ही उन्होंने मीता की हत्या कर दी। पोस्टमॉर्टम में मीता की मौत पानी डूबने के कारण दम घुटने से होनी पायी गयी। इस मामले में जांच के उपरांत 13 जुलाई 2020 को मृतका के पति संजय को गिरफ्तार किया गया।

इधर, मंगलवार को अभियोजन एवं बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की बहस सुनने के बाद न्यायालय ने अभियुक्त संजय कुमार को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत 7 वर्ष के कठोर कारावास व 10 हजार के अर्थदंड तथा अर्थदंड न चुकाने पर 6 माह के अतिरिक्त कारावास के साथ ही दहेज के लिए प्रताड़ित धारा 498 ए के तहत 3 वर्ष के कठोर कारावास व 5 हजार के अर्थदंड तथा अर्थदंड न चुकाने पर 3 माह के अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उत्तराखंड अपराध से पीड़ित अधिनियम के तहत जिला विधिक प्राधिकरण से मृतका की मां को अनुमन्य सहायता उपलब्ध कराने के आदेश भी दिये हैं।

इस मामले में न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की है कि किसी महिला की संतान होना या न होना एक जैविक तथ्य है, जिसके लिए महिला जिम्मेदार नहीं है। अभियुक्त ने ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया कि उसने इसके लिए पत्नी का किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से उपचार कराया। उल्टे अभियुक्त द्वारा अपनी निर्दोष पत्नी को बांझ बताकर अपमानित एवं कलंकित किया। ऐसे में पत्नी के समक्ष आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहा। इसलिए अभियुक्त को दंडित करना जरूरी है, ताकि वह कारागार में रहकर अपने अपराध का प्रायश्चित भी कर सके।