बिहार की सियासत में एक बार फिर नीतीश कुमार ही क्यों? जानिए पूरी कहानी
News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम है, जिन्हें आप पसंद या नापसंद कर सकते हैं, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। एक बार फिर से ये तय हो गया है कि बिहार की कमान उन्हीं के हाथ में होगी। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा क्या है कि हर बार सत्ता की चाबी नीतीश कुमार के पास ही आ जाती है, चाहे चुनावी नतीजे कैसे भी हों? चलिए, इस सियासी गणित को आसान भाषा में समझते हैं।
अनुभवी हाथ पर आज भी भरोसा
बिहार की राजनीति में पिछले लगभग दो दशकों से नीतीश कुमार एक धुरी बने हुए हैं।[1] कई बार ऐसा भी हुआ जब उनकी पार्टी को विधानसभा में बहुत बड़ी जीत नहीं मिली, फिर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वही बैठे।[1] इसकी सबसे बड़ी वजह है उनकी प्रशासनिक पकड़ और अनुभव। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ आज भी अच्छी सड़कें, बिजली, और सरकारी सेवाएँ चुनावी मुद्दों में सबसे ऊपर रहती हैं, वहाँ नीतीश कुमार की एक अनुभवी प्रशासक की छवि लोगों को भरोसा दिलाती है।[1] ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में मतदाता उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर देखते हैं जो बहुत दिखावा तो नहीं करते, पर भरोसेमंद हैं।[1]
गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी
नीतीश कुमार को गठबंधन की राजनीति का एक मंझा हुआ खिलाड़ी माना जाता है। वो जानते हैं कि सबको साथ लेकर कैसे चलना है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अंदर भी, जब सीटों के बंटवारे और मंत्रालयों की बात आती है, तो नीतीश एक ऐसे सर्वसम्मत चेहरे के रूप में उभरते हैं जो सहयोगियों के बीच किसी भी तरह के मनमुटाव को बढ़ने से रोकते हैं।[1] गठबंधन के लिए भी बिहार में एक स्थिर सरकार चलाना राष्ट्रीय स्तर पर तालमेल के लिए ज़रूरी है, और नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहने से यह स्थिरता बनी रहती है।
हर जाति-समुदाय में थोड़ी-बहुत पकड़
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण बहुत मायने रखते हैं। नीतीश कुमार उन कुछ नेताओं में से हैं जिनकी पहुँच अलग-अलग जातीय समूहों तक है।यही वजह है कि वे एक ऐसे नेता बन जाते हैं जिन्हें पूरी तरह से कोई भी बड़ा सामाजिक गुट ख़ारिज नहीं कर पाता। चुनावी राजनीति में यह खूबी उन्हें हमेशा आगे रखती है, क्योंकि वे अलग-अलग हितों को साधने में कामयाब रहते हैं।
सुशासन बाबू की छवि आज भी कायम
एक समय था जब बिहार में "जंगल राज" की बातें आम थीं। उस दौर के बाद जब नीतीश कुमार सत्ता में आए, तो उन्होंने 'सुशासन बाबू' की छवि बनाई। कानून-व्यवस्था, सड़कों का जाल बिछाना, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में हुए बदलावों ने उनकी इस छवि को और मज़बूत किया।भले ही हाल के कुछ सालों में उनकी राजनीतिक चालों पर सवाल उठे हों, लेकिन लोगों के एक बड़े वर्ग में उनकी पुरानी छवि आज भी बरक़रार है।
तो कुल मिलाकर, नीतीश कुमार का एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना सिर्फ एक राजनीतिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति की हकीकत को दिखाता है। यहाँ अनुभव को नए प्रयोगों पर तरजीह दी जाती है, गठबंधन की मजबूरियाँ एक जाने-पहचाने प्रशासक के पक्ष में होती हैं, और जनता का एक बड़ा हिस्सा स्थिरता को ही सबसे बड़ा मुद्दा मानता है।
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