मकर संक्रांति भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो हर साल जनवरी में मनाया जाता है। देशभर में इसे सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के अवसर पर उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। आपने गौर किया होगा कि मकर संक्रांति लगभग हर साल 14 जनवरी को ही मनाई जाती है, जबकि अन्य भारतीय त्योहारों की तारीखें हर साल बदलती रहती हैं। 2024 में यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया गया था, लेकिन 2025 में यह फिर से 14 जनवरी को मनाया जाएगा। आइए समझते हैं कि मकर संक्रांति की तारीख हर साल लगभग स्थिर क्यों रहती है और इसके पीछे का कारण क्या है।
मकर संक्रांति का महत्व और वैज्ञानिक आधार
मकर संक्रांति क्या है?
मकर संक्रांति का संबंध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से है। जब सूर्य धनु राशि (Sagittarius) से मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश करता है, तो इस खगोलीय घटना को मकर संक्रांति कहा जाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण (उत्तर दिशा की ओर) हो जाता है, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे मौसम में बदलाव और फसल कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।
संक्रांति का अर्थ
संक्रांति का अर्थ है “संक्रमण”। यह उस समय को दर्शाता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
- सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
- मकर संक्रांति के दौरान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जो वर्ष के 12 राशिचक्रों में से एक है।
14 जनवरी को मकर संक्रांति क्यों पड़ती है?
सौर कैलेंडर से जुड़ाव
मकर संक्रांति का संबंध सौर कैलेंडर से है। यह खगोलीय घटना पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा पर आधारित होती है, जो लगभग 365 दिन और 6 घंटे में पूरी होती है। इस अतिरिक्त 6 घंटे के कारण हर चार साल में 1 दिन जुड़ता है, जिसे लीप ईयर कहा जाता है।
अन्य भारतीय त्योहार जैसे होली, दीपावली आदि चंद्र कैलेंडर के अनुसार मनाए जाते हैं, जिससे उनकी तारीख हर साल बदलती है। लेकिन मकर संक्रांति सूर्य कैलेंडर से जुड़ी है, इसलिए यह लगभग हर साल 14 जनवरी को ही पड़ती है।
क्या मकर संक्रांति की तारीख बदल सकती है?
हालांकि मकर संक्रांति की तारीख अधिकांश समय 14 जनवरी को रहती है, लेकिन लंबे समय में इसमें बदलाव होता है।
- 1900 से 1965 के बीच मकर संक्रांति 13 जनवरी को मनाई गई थी।
- 2019 के बाद, मकर संक्रांति 15 जनवरी को भी पड़ने लगी है।
- भविष्य में पृथ्वी की कक्षा और सूर्य के स्थान में बदलाव के कारण यह त्योहार 15 जनवरी को अधिक बार मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति की तारीखें क्यों बदलती हैं?
1. पृथ्वी की कक्षा का प्रभाव
पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर घूमने में लगभग 365.25 दिन लगते हैं। इस अतिरिक्त 0.25 दिन का प्रभाव लंबे समय में कैलेंडर की तारीखों पर पड़ता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति की तारीखें धीरे-धीरे बदल रही हैं।
2. खगोलीय गणनाओं में बदलाव
खगोलीय गणनाओं के अनुसार, हर 72 साल में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश लगभग 1 दिन की देरी से होता है। इसलिए भविष्य में मकर संक्रांति 15 जनवरी को अधिक बार मनाई जाएगी।
इतिहास में मकर संक्रांति की तारीखों में बदलाव
- 12 और 13 जनवरी: 1900 से पहले, मकर संक्रांति कभी-कभी 12 या 13 जनवरी को पड़ती थी।
- 13 जनवरी: 1900 से 1965 के बीच मकर संक्रांति अधिकतर 13 जनवरी को मनाई गई।
- 14 जनवरी: 1966 के बाद से यह अधिकतर 14 जनवरी को पड़ने लगी।
- 15 जनवरी: 2019 से यह कभी-कभी 15 जनवरी को भी पड़ने लगी है।
मकर संक्रांति और उत्तरायण
मकर संक्रांति को उत्तरायण की शुरुआत माना जाता है। उत्तरायण का अर्थ है सूर्य का उत्तरी गोलार्ध की ओर झुकाव। इस दौरान:
- दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं।
- मौसम में बदलाव आता है और फसल कटाई का समय शुरू होता है।
- इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे लोहड़ी, पोंगल, माघ बिहू आदि।
मकर संक्रांति की स्थिरता का कारण
- सूर्य कैलेंडर पर आधारित:
चंद्र कैलेंडर की तुलना में सौर कैलेंडर स्थिर रहता है। चंद्र कैलेंडर में प्रत्येक वर्ष में दिन कम होते हैं, जिससे त्योहारों की तारीख बदलती रहती है। - खगोलीय घटना:
मकर संक्रांति एक खगोलीय घटना पर आधारित है। जब तक पृथ्वी की कक्षा में बड़ा बदलाव नहीं होता, यह तारीख स्थिर रहती है।