International Relations : शी जिनपिंग ने किम और पुतिन को बीजिंग में एक साथ लाकर पश्चिम को क्या संदेश दिया?

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News India Live, Digital Desk:  International Relations : हाल ही में दुनिया ने एक ऐसी तस्वीर देखी जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है. बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन एक साथ एक मंच पर नज़र आए. यह कोई आम मुलाकात नहीं थी. यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी, जिसके ज़रिए पश्चिम, खासकर अमेरिका को एक बहुत साफ़ और कड़ा संदेश दिया गया है.

तो शी जिनपिंग इन दोनों नेताओं को एक साथ क्यों लाए?

इसे समझने के लिए हमें इन तीनों देशों के अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ चल रहे तनाव को देखना होगा. ये तीनों ही देश किसी न किसी रूप में अमेरिकी प्रतिबंधों और दबाव का सामना कर रहे हैं.

  1. चीन: अमेरिका के साथ चीन का ट्रेड वॉर और टेक्नोलॉजी को लेकर टकराव किसी से छिपा नहीं है. ताइवान के मुद्दे पर भी अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं.
  2. रूस: यूक्रेन पर हमला करने के बाद से रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं.
  3. उत्तर कोरिया: अपने परमाणु कार्यक्रम के चलते उत्तर कोरिया दशकों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध झेल रहा है.

ऐसे में, शी जिनपिंग ने इन दोनों नेताओं को एक साथ बीजिंग में बुलाकर यह दिखाया है कि जिन देशों को अमेरिका और पश्चिम अपना दुश्मन मानते हैं, वे अब अकेले नहीं हैं. वे एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. यह अमेरिका के खिलाफ एक "अक्ष" या "गुट" बनाने की कोशिश है.

इस मुलाकात के पश्चिम के लिए क्या मायने हैं?

यह बैठक सिर्फ एक फोटो खिंचवाने का मौका नहीं थी, बल्कि इसके गहरे कूटनीतिक मायने हैं:

  • एकजुटता का प्रदर्शन: इसका सबसे सीधा संदेश है - "तुम हम पर जितना दबाव डालोगे, हम उतना ही करीब आएंगे." यह पश्चिम की 'बांटो और राज करो' की नीति को सीधा जवाब है. यह दिखाता है कि अमेरिकी प्रतिबंध इन देशों को अलग-थलग करने की बजाय, उन्हें एक-दूसरे पर निर्भर बना रहे हैं.
  • नियम-आधारित विश्व व्यवस्था को चुनौती: अमेरिका और पश्चिमी देश हमेशा "नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था" की बात करते हैं. इस बैठक के ज़रिए चीन, रूस और उत्तर कोरिया यह कह रहे हैं कि दुनिया के नियम सिर्फ पश्चिमी देश तय नहीं करेंगे. वे एक ऐसी बहुध्रुवीय (multipolar) दुनिया चाहते हैं, जहां सिर्फ अमेरिका का दबदबा न हो.
  • आर्थिक और सैन्य सहयोग: यह मुलाकात भविष्य में इन देशों के बीच बढ़ते आर्थिक और सैन्य सहयोग का भी संकेत है. रूस और उत्तर कोरिया, दोनों को अपनी अर्थव्यवस्था और सेना के लिए चीन के साथ की ज़रूरत है. वहीं, चीन को इन दोनों के रूप में ऐसे साथी मिलते हैं जो खुलकर अमेरिकी नीतियों का विरोध करते हैं.

क्या यह एक नया 'कोल्ड वॉर' है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह तस्वीर शीत युद्ध (Cold War) की याद दिलाती है, जब दुनिया दो गुटों में बंटी थी. हालांकि, आज की स्थिति थोड़ी अलग है, लेकिन यह साफ है कि दुनिया में एक नई तरह की गुटबंदी शुरू हो चुकी है. एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी (जैसे NATO और G7) हैं, तो दूसरी तरफ चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश हैं जो इस व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं.

यह बैठक अमेरिका और उसके साथियों के लिए एक चेतावनी है कि उनकी दबाव की नीति का उल्टा असर हो रहा है और यह दुनिया को एक नए और शायद ज़्यादा खतरनाक टकराव की ओर धकेल रही है.

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