‘स्लीप स्क्रीनिंग’ क्या है? डॉक्टरों का मानना ​​है कि यह दुर्घटनाओं को रोकने का एक प्रभावी तरीका

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Truck driver accident:  ट्रक चालकों की पूरी नींद नहीं लेने के कारण सड़क हादसों के बढ़ते खतरे का हवाला देते हुए डॉक्टरों के एक संगठन ने देश में हर दो साल में इन चालकों की नियमित ‘स्लीप स्क्रीनिंग’ (नींद से संबंधित बीमारियों का पता लगाने के लिए की जाने वाली स्वास्थ्य जांच) की व्यवस्था शुरू करने का सुझाव दिया है. ‘साउथ ईस्ट एशियन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन’ के अध्यक्ष डॉ. राजेश स्वर्णकार ने रविवार को कहा, ‘ट्रक चालकों की पूरी नींद नहीं लेने के कारण सड़क हादसों का खतरा बढ़ रहा है. इसे देखते हुए क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (आरटीओ) को हर दो साल में एक फॉर्म भरकर ट्रक चालकों से पूछना चाहिए कि उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) क्या है, क्या उन्हें दिन में नींद आती है और क्या वे रात में सोते समय खर्राटे लेते हैं?’

उन्होंने कहा कि इन सवालों के जवाबों और मेडिकल जांच के विश्लेषण से यह पता लगाया जा सकता है कि ट्रक चालक ‘स्लीप एप्निया’ या नींद से जुड़ी अन्य बीमारियों से पीड़ित तो नहीं हैं। स्वर्णकार ने एक अनुमान का हवाला देते हुए कहा कि अगर ट्रक चालक काम के दौरान हर दिन सात से आठ घंटे की नींद लें तो सड़क दुर्घटनाओं का खतरा 43 प्रतिशत तक कम हो सकता है।

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इंदौर के ट्रांसपोर्ट नगर में अपने ट्रक को लंबी यात्रा के लिए तैयार करने वाले ड्राइवर धर्मेंद्र शर्मा बताते हैं कि काम के दौरान वे दिन में दो से चार घंटे ही सो पाते हैं, जिससे उनमें सुस्ती बनी रहती है और उनकी एकाग्रता भी प्रभावित होती है।

जब हमने ट्रांसपोर्ट नगर के कुछ अन्य ट्रक ड्राइवरों से बात की तो पता चला कि वे भी इसी तरह की नींद की समस्या से जूझ रहे हैं।ड्राइवरों के अनुसार, ट्रैफिक जाम और टोल बूथों पर लगने वाली कतारों के कारण उन पर सामान को जल्द से जल्द गंतव्य तक पहुंचाने का दबाव रहता है। और अगर वे सड़क किनारे ट्रक खड़ा करके सोते हैं, तो उन्हें डर रहता है कि कहीं गाड़ी से डीजल, स्पेयर पार्ट्स और सामान चोरी न हो जाए। नतीजतन, वे काम के दौरान ठीक से सो नहीं पाते।

इस बीच, ट्रांसपोर्टरों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के राष्ट्रीय आरटीओ एवं परिवहन समिति के अध्यक्ष सीएल मुकाती ने ट्रक ड्राइवरों की ‘स्लीप स्क्रीनिंग’ के विचार का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि परिवहन विभाग को अस्पतालों को अधिकृत करके ट्रक ड्राइवरों की नियमित स्वास्थ्य जांच और ‘स्लीप स्क्रीनिंग’ करानी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘अगर इस जांच में कोई ड्राइवर नींद संबंधी किसी बीमारी से पीड़ित पाया जाता है तो उसे मुफ्त इलाज दिया जाना चाहिए। अगर सरकार चाहे तो हमारा संगठन इसके लिए फंड भी मुहैया करा सकता है।’

मुकाती ने कहा कि ड्राइवरों के काम के घंटे भी तय होने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘सरकार को राजमार्गों पर हर 200 किलोमीटर पर ट्रक ड्राइवरों के लिए विश्राम गृह बनाने चाहिए ताकि वे चैन की नींद सो सकें।’

स्लीप एप्निया क्या है?

स्लीप एपनिया नींद से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। स्लीप एपनिया के केंद्र की बात करें तो इससे पीड़ित व्यक्ति की नींद में कई बार खलल पड़ता है। कई मामलों में सांस भी रुक सकती है। स्लीप एपनिया होने पर व्यक्ति कई बार करवट बदलता है। एक अध्ययन के अनुसार, देश की 13 फीसदी आबादी ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से पीड़ित है। पुरुषों में यह आंकड़ा 19.7 फीसदी है, जबकि महिलाओं में यह 7.4 फीसदी है। स्लीप एपनिया होने पर सांस रुकने या करवट बदलने जैसी स्थिति एक घंटे में तीस या उससे ज्यादा बार पैदा हो सकती है। यह एक ऐसा विकार है जो नींद से जुड़ी दूसरी समस्याओं का भी कारण बन सकता है।