भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में हाल के दिनों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। 3 जनवरी 2025 को समाप्त सप्ताह में यह भंडार 634.6 अरब डॉलर पर आ गया है, जो 27 सितंबर 2024 के उच्चतम स्तर 704.9 अरब डॉलर से काफी नीचे है। पिछले 14 हफ्तों में भारत ने विदेशी मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर से अधिक की कमी दर्ज की है।
मुद्रा भंडार में गिरावट: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
सबसे लंबी साप्ताहिक गिरावट नहीं
- मार्च 2022 से मई 2022 तक 30 हफ्तों तक चली गिरावट अब तक की सबसे लंबी थी।
- मौजूदा गिरावट (4 अक्टूबर 2024 से 3 जनवरी 2025) 14 हफ्तों की है, जो अब तक की पांचवीं सबसे लंबी गिरावट हो सकती है।
मूल्य के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी गिरावट
- 4 अक्टूबर 2024 से 3 जनवरी 2025 के बीच 14 हफ्तों में 70.3 अरब डॉलर की कमी आई है।
- इससे पहले सबसे बड़ी गिरावट 71.4 अरब डॉलर (3 जून 2022 से 4 नवंबर 2022) दर्ज की गई थी।
तेज गिरावट के प्रमुख उदाहरण
- 2008 वैश्विक वित्तीय संकट:
- सितंबर-दिसंबर 2008 के बीच विदेशी मुद्रा भंडार 15.8% गिर गया।
- 2022 फेडरल रिजर्व प्रभाव:
- जून-नवंबर 2022 के बीच भंडार 11.9% गिरा।
- मौजूदा गिरावट:
- 4 अक्टूबर 2024 से 3 जनवरी 2025 के बीच 9.97% की कमी।
गिरावट के आर्थिक प्रभाव
मुद्रा भंडार और आयात कवर
- मार्च 2024: भारत के पास 11.3 महीनों का आयात कवर था।
- नवंबर 2024: यह घटकर 11 महीनों का रह गया।
- आरबीआई का कहना है कि भंडार अब भी आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है।
रुपये पर प्रभाव
- वर्तमान गिरावट के दौरान रुपया डॉलर के मुकाबले अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है।
- औसत गिरावट:
- 2.8% गिरावट आमतौर पर लंबी अवधि की कमी के दौरान होती है।
- मौजूदा अवधि (14 सप्ताह) में रुपया 2.5% गिरा है।
- सबसे बड़ी गिरावट:
- 20 अप्रैल से 7 सितंबर 2018 के बीच रुपया 10.13% गिरा।
विशेषज्ञों की राय
कारण:
- डॉलर की मजबूती:
वैश्विक बाजार में डॉलर मजबूत हुआ है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा। - विदेशी निवेश में कमी:
भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) घटा है। - आयात बढ़ना:
कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की आयात लागत बढ़ने से मुद्रा भंडार पर असर पड़ा। - आरबीआई का हस्तक्षेप:
रुपये को स्थिर रखने के लिए आरबीआई ने बाजार में हस्तक्षेप किया, जिससे भंडार में गिरावट आई।
समाधान:
- अल्पकालिक राहत के लिए आरबीआई ने रुपये को गिरने दिया, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए:
- निर्यात बढ़ाना।
- आर्थिक सुधार लागू करना।
- विनिवेश और विदेशी निवेश आकर्षित करना।
गिरावट के मुख्य कारण
- डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी।
- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट।
- आरबीआई का हस्तक्षेप।
- आयात में वृद्धि और निर्यात में कमी।