बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसकी लीडरशिप नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस कर रहे हैं, ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी की मांग की है। फिलहाल शेख हसीना भारत में हैं। वे 5 अगस्त को तख्तापलट के बाद वायुसेना के हेलिकॉप्टर से गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पहुंची थीं और तब से दिल्ली के किसी अज्ञात स्थान पर रह रही हैं। बांग्लादेश की सरकार ने हाल ही में एक डिप्लोमैटिक नोट के जरिए उनकी वापसी का अनुरोध किया, लेकिन भारत सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
भारत की स्थिति: प्रत्यर्पण पर असहमति
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार शेख हसीना को बांग्लादेश वापस भेजने पर विचार नहीं कर रही है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दबाव के बावजूद, भारत की यह स्थिति कुछ ठोस कारणों पर आधारित है:
- प्रत्यर्पण संधि में राजनीतिक व्यक्तियों की वापसी शामिल नहीं है:
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन इसमें राजनीतिक शख्सियतों की वापसी का प्रावधान नहीं है। - भू-राजनीतिक कारण:
भारत का मानना है कि भविष्य में अगर बांग्लादेश में हालात बदलते हैं, तो शेख हसीना सत्ता में लौट सकती हैं। ऐसी स्थिति में उनकी भूमिका भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होगी। - कट्टरपंथी ताकतों पर नियंत्रण:
शेख हसीना ने अपने 15 साल के शासनकाल में बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों पर प्रभावी तरीके से लगाम लगाई थी। यह भारत के लिए एक सकारात्मक पहलू रहा है, जिसे वह भूला नहीं सकता।
भारत और शेख हसीना का ऐतिहासिक संबंध
शेख हसीना का भारत के साथ पुराना रिश्ता है। उन्होंने पहले भी भारत में समय बिताया है। उनके परिवार के कई सदस्य, जैसे उनके बेटे और बेटी, भी भारत में रहे हैं। तख्तापलट के बाद, भारत उनके लिए सबसे सहज और सुरक्षित स्थान था।
भारत में रहते हुए, शेख हसीना को बांग्लादेश की राजनीति को प्रभावित करने का अवसर मिलेगा। उनका प्रभाव न केवल बांग्लादेश में स्थिरता ला सकता है, बल्कि भारत के साथ उनके पूर्व कार्यकाल में हुए सहयोग और समझौतों को भी बरकरार रख सकता है।
शेख हसीना के शासनकाल की उपलब्धियां
- कट्टरपंथ पर नियंत्रण:
शेख हसीना ने कट्टरपंथी संगठनों को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाई। - सीमा विवादों का शांतिपूर्ण समाधान:
उनके कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा संबंधी विवादों को हल किया गया। - व्यापारिक संबंधों में वृद्धि:
भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार उनके शासनकाल में तेजी से बढ़ा, जिससे दोनों देशों को लाभ हुआ।
भारत का रुख: समय निकालने की रणनीति
भारत अपने निर्णय को स्थगित करने का विकल्प चुन सकता है। प्रत्यर्पण के अनुरोध पर विचार करने की बात कहकर भारत समय निकाल सकता है। इस बीच, वह परिस्थितियों का मूल्यांकन करेगा और स्थिति को संतुलित रखने की कोशिश करेगा।
भारत की परंपरा: मेहमानों का स्वागत
भारत ने लंबे समय से अपने दरवाजे शरण मांगने वालों के लिए खुले रखे हैं।
- दलाई लामा का उदाहरण:
1959 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और हजारों तिब्बती शरणार्थियों को भारत ने शरण दी थी। वे आज भी भारत में रह रहे हैं। - शेख हसीना का मामला:
इसी परंपरा के तहत शेख हसीना को भी भारत में शरण दी गई है।
भविष्य की संभावनाएं
हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार उनके प्रत्यर्पण के लिए दबाव बना रही है, लेकिन भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से यह संभावना है कि शेख हसीना कुछ सालों में बांग्लादेश में वापसी कर सकती हैं। भारत इस बात को समझता है कि शेख हसीना का राजनीतिक भविष्य न केवल बांग्लादेश, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
निष्कर्ष
शेख हसीना की भारत में उपस्थिति और उनके प्रत्यर्पण को लेकर बांग्लादेश की मांग के बीच, भारत ने अपनी परंपरागत मेहमाननवाजी और रणनीतिक सोच को बनाए रखा है। भले ही अंतरिम सरकार दबाव बनाए, भारत इस मुद्दे पर