भावनाशून्य व्यक्ति जीवन के महत्व से अनभिज्ञ रहता है। अज्ञानी व्यक्ति स्वयं को खो देता है। अज्ञानी मनुष्य की अपनी कोई पहचान नहीं होती। अज्ञानी मनुष्य दूसरे के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचता है। कठपुतली का नृत्य नटराज के नृत्य से बहुत हीन है, जबकि मनुष्य को नटराज की तरह जीना चाहिए।
देखते नहीं, आजकल हमारे जीवन में नृत्य, संगीत, चिंतन, विचार, विचार, विवेक, पहचान, जांच, सिद्धक, संयम, स्पष्टता, सहजता, सरलता, संपर्क, संवाद और सरोकार जैसे गुण नकारात्मक होते जा रहे हैं। इन गुणों को मानव अस्तित्व से कौन छीन रहा है? समय से पहले जन्मचिह्न क्यों होता है? हम असंवेदनशील क्यों होते जा रहे हैं? ख़ुशी हमसे दूर क्यों होती जा रही है?
हम शोरगुल की तरह क्यों जीने लगे हैं? इन चार-पाँच बिन्दुओं के कारण मनुष्य की स्वतंत्रता को गुलाम मानसिकता का शिकार बनना पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वतंत्र एवं मानवतावादी सोच के कारण ही मनुष्य संघर्षशील बना रह सकता है। संघर्ष क्या है? संघर्ष को कर्तरी कर्म कहा जा सकता है।
संघर्ष को सफलता कहा जा सकता है। संघर्ष को ही जीवन कहा जा सकता है। संघर्ष को पुरुषार्थ कहा जा सकता है। संघर्ष को मनुष्य की उम्र का लाभ कहा जा सकता है। तो अब निर्णय कहता है कि संघर्ष से जो समय अस्तित्व में आता है उसे भविष्य कहते हैं। खेद की बात है कि भारत राष्ट्र अभी भी पूर्णतः उग्रवादी नहीं बन पाया है।
हमारे इस देश में जो अच्छे, ईमानदार और ईमानदार लोग संघर्ष कर रहे हैं, उनके संघर्ष से मूल्यवान चमत्कार स्वार्थी और लुटेरे वर्ग छीन लेते हैं। इस चिंता का मतलब यह है कि आज हमें सचेत जीवनशैली अपनानी चाहिए।