मध्य प्रदेश के भोपाल में वक्फ बोर्ड से जुड़ा एक मामला सामने आया है। कहने को यह राजधानी का केंद्र है लेकिन यहां खुले तौर पर इस्लामवादियों ने बीच शहर में सरकारी एवं निजी सम्पत्ति पर जबरन कब्जा, नव बहार सब्जी मंडी की बिल्डिंग के पास कर लिया है और बोर्ड भी चस्पा कर दिया है। जिसमें कि यहां बने हिंदू अनाथालय की भूमि पर कब्जा करने की तैयारी की जा रही है। कुछ लोगों को प्रलोभन दिया जा रहा है और कुछ को डर दिखाया जा रहा है। पता चला है वक्फ के नाम पर वसूली भी चालू है।
वस्तुत: इस घटना ने आज एक बार फिर चिंता ने डाल दिया है और यह सोचने के लिए विवश किया है कि न जाने भारत में इस प्रकार के कितने स्थान और संपत्तियां होंगी जहां वक्फ बोर्ड से जुड़े लोग इसी तरह से कब्जा कर उसे आगे हमेशा के लिए वक्फ की संपत्ति घोषित कर देने का काम कर रहे हैं । वास्तव में यह मामला इतना महत्व का है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया है कि वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग 120 याचिकाएं देश भर की विभिन्न अदालतों के समक्ष लंबित हैं। अधिकांश में भारत के विधि आयोग को अनुच्छेद 14 और 15 की भावना में ‘ट्रस्ट-ट्रस्टी और चैरिटी-चैरिटेबल संस्थानों के लिए एक समान कानून’ का मसौदा तैयार करने के लिए कहा गया है।
दरअसल, वक्फ को संसद से मिली शक्तियां आज भारत में एक आम इंसान के मन में यह डर पैदा कर रही हैं कि कहीं कभी उसकी संपत्ति की बारी न आ जाए और वक्फ उस पर अपना दावा न ठोक दे। मध्य प्रदेश के भोपाल में ऐसे ही एक प्रकरण का जिक्र यहां बनी मनोहर डेरी के सामने ईसराणी मार्केट से लगी हुई नगर निगम/ सरकारी 27000 वर्गफीट जमीन का है। पुराने शहर के बीचों बीच अरबों रुपये की इन जमीनों को लेकर वक्फ पर आरोप है कि उसने जबरदस्ती कब्जा कर लिया है । कहनेवाले कह रहे हैं कि अकेले मध्य प्रदेश में इस प्रकार के अनेकों केस हैं, फिर देश में क्या स्थिति होगी।
वक्फ बोर्ड की मनमानी को अदालतों में चुनौती देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दिग्विजयनाथ तिवारी सही कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड को मिले अधिकारों में कटौती करने की जरूरत है, क्योंकि वक्फ बोर्ड द्वारा जमीन कब्जाने का षड्यंत्र 2013 के बाद से और तेज हो गया है। इसी साल सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी थीं। काग्रेस की इस सरकार ने वक्फ कानून 1995 में संशोधन कर उसे इतना घातक बना दिया कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा करने लगा है। यह आप इससे भी समझ सकते हैं कि आज भारत में सशस्त्र बल और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख 54 हजार से अधिक संपत्तियां हैं, जोकि आठ लाख एकड़ से ज्यादा है।’’
वस्तुत: इस एतिहासिक सत्य को किसी को नहीं भूलना चाहिए कि 1945 में ही बहुत लोगों को लगने लगा था कि अब पाकिस्तान बन कर रहेगा। जिसमें ‘मुस्लिम लीग’ पूरी तरह से आश्वस्त थी कि चाहे जो भी हो, वह मजहब के आधार पर भारत का विभाजन करा लेगी। इसलिए उस समय के अधिकतर मुस्लिम नवाबों और जमींदारों ने जो पाकिस्तान के पक्ष में थे, अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए एक चाल चली। इसके तहत हर जमींदार और नवाब ने अपनी संपत्ति का वक्फ बना दिया और भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि जिन लोगों ने पाकिस्तान बनाने में जिन्ना और अली बन्धुओं जैसे तमाम लोगों का साथ दिया, भारत में छूटी उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित करने के बजाय उसे वक्फ की घोषित कर दिया जाएगा। तत्कालीन कांग्रेस की नेहरू सरकार ने यही किया।
एक अनुमान के अनुसार 6-8 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन वक्फ बोर्ड के पास गई थी, जबकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत विभाजन के समय पाकिस्तान को 10,32,000 वर्ग किलोमीटर भूमि दी गई थी। यानी मुसलमानों ने पाकिस्तान देश के नाम पर भी जमीन ली और वक्फ के नाम पर भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। यही नहीं, बाद में सरकारी और गैर-सरकारी जमीन पर भी मजार, मस्जिद और मदरसे बनाकर वक्फ की संपत्ति बढ़ाना इसने अब तक जारी रखा हुआ है।
पिछले साल सांसद हरनाथ सिंह ने वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 को खत्म करने के लिए एक निजी विधेयक संसद में पेश किया था । उनकी बताई दो घटनाओं का जिक्र करना यहां पर्याप्त होगा। तमिलनाडु के त्रिचि जिले के गांव में डेढ़ हजार आबादी है, उसमें कुल और मात्र सात-आठ घर मुस्लिमों के हैं और पड़ोस में ही एक भगवान शंकर जी का मंदिर है जो डेढ़ हजार साल पुराना है। वक्फ बोर्ड ने उस गांव की पूरी संपत्ति पर अपना दावा ठोक दिया और सबको खाली करने का नोटिस कलेक्टर के यहां से पहुंचा दिया गया। कागजात से भी संपत्ति खारिज हो गई। इस गांव की अधिकतर आबादी गरीब है, ऐसे में जब इस गांव के हिन्दू लोग थक हार गए तो उन्हें एक ऑप्शन देते हुए मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। इस्लामवादियों ने सुझाव दिया, मुस्लिम बनने पर उनकी जमीन बच जाएगी।
उनका दिया दूसरा उदाहरण महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का है, जहां एक बस्ती में 250 के करीब हिन्दू अनुसूचित जाति वर्ग के लोग रहते हैं, उनके पास एक नोटिस उनकी जमीन को खाली करने का आया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की जमीन है। बस्तीवाले दर-दर भटकते रहे, लेकिन कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी, तब उनको भी इस्लाम अपनाकर मुसलमान बन जाने का ऑफर दिया गया। वस्तुत: इन दोनों ही मामलों की प्रकृति देखकर समझा जा सकता है कि यह विषय कितना गंभीर है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ध्यान दिलाते हैं कि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों, सिखों और अन्य समुदायों के लिए वक्फ बोर्डों द्वारा जारी वक्फ की सूची में शामिल होने से उनकी संपत्तियों को बचाने के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। यह सीधे तौर पर उनके साथ भेदभाव है, जोकि संविधान के अनुच्छेद 14-15 का उल्लंघन करता है। इसके अधिनियम एस 4, 5, 6, 7, 8, 9, 14 में दिए प्रावधान वक्फ संपत्तियों को ट्रस्ट, मठों, अखाड़ों, समितियों को समान दर्जा देने से वंचित करने के लिए विशेष दर्जा प्रदान करते हैं। साथ ही किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में रजिस्टर्ड करने के लिए वक्फ बोर्डों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करते हैं। ऐसे में कहना होगा कि अभी वक्फ के नाम पर देश भर में जो चल रहा है, वह उचित नहीं है। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इस प्रकार की जहां भी शिकायत मिलती है, उसे गंभीरता से ले और वक्फ को लेकर आम आदमी से जुड़ी हर शिकायत की गंभीर जांच कराए।