Uttar Pradesh : संकटमोचन मंदिर के महंथ वीरभद्र मिश्रा ने कहाँ से सीखा था संगीत? सामने आया अनोखा राज़

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News India Live, Digital Desk: बनारस की पावन नगरी काशी (वाराणसी) जहाँ संगीत और आध्यात्म एक साथ पलते-बढ़ते हैं, वहां से एक बेहद ख़ास और प्रेरक कहानी सामने आई है. बनारस घराने के प्रख्यात शास्त्रीय गायक पद्मभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र (Pandit Chhannulal Mishra) ने काशी के प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर (Sankat Mochan Temple) के पूर्व महंथ, प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र (Prof. Virbhadra Mishra) को संगीत की शिक्षा दी थी. ये कहानी बताती है कि कैसे कला और आस्था की धाराएं एक-दूसरे में मिलकर काशी को अद्वितीय बनाती हैं.

प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र, जो पर्यावरणविद और प्रतिष्ठित महंथ के रूप में जाने जाते थे, उनकी संगीत सीखने की यह इच्छा इतनी प्रबल थी कि वह खुद हर रविवार को असी रोड से चलकर पंडित छन्नूलाल मिश्र के घर संकटमोचन मंदिर के ठीक बगल में आते थे. यहाँ पर छन्नूलाल जी उन्हें शास्त्रीय गायन (Classical singing) का रियाज़ करवाते थे और संगीत की बारीकियां सिखाते थे. वीरभद्र जी इतनी श्रद्धा और लगन से संगीत सीखते थे कि उन्हें रियाज़ कराने में पंडित छन्नूलाल जी को बहुत खुशी मिलती थी.

छन्नूलाल मिश्र (Chhannulal Mishra) जी ने खुद एक साक्षात्कार में इस बात का जिक्र किया था कि वीरभद्र मिश्र बहुत लगनशील और सीखने के इच्छुक व्यक्ति थे. गुरु-शिष्य परंपरा का यह अनूठा उदाहरण बताता है कि कैसे शिक्षा ग्रहण करने की कोई उम्र नहीं होती और अगर शिष्य सीखने वाला हो तो गुरु अपनी पूरी निष्ठा से ज्ञान प्रदान करते हैं.

पंडित छन्नूलाल मिश्र जी ने संकटमोचन मंदिर परिसर में कई संगीत सभाएं भी आयोजित कीं, जिसमें वीरभद्र मिश्र हमेशा उनके साथ मौजूद रहते थे. उनके अनुसार, वीरभद्र मिश्र की वजह से ही वह बाद में खुद भी संकटमोचन मंदिर में जाकर शास्त्रीय गायन का रियाज़ करने लगे थे, जहाँ पहले वह गुरु न होकर, अब रियाज़ के लिए एक स्थान की तलाश में आते थे.

इस कहानी से न केवल काशी की संगीत परंपरा, बल्कि गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्ते की एक अनमोल झलक मिलती है. यह हमें दिखाता है कि कला और आध्यात्म कैसे मिलकर समाज में सद्भाव और ज्ञान का प्रसार करते हैं.

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