कानपुर, 22 मई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ शायद देश का पहला ऐसा संघ होगा जहां उनके चयन कर्ताओं को अग्निपरीक्षा से गुजरने के लिए विवश होना पड़ता है। संघ के पूर्व सचिव, निदेशक और पूर्व सचिव के निजी सचिव उन चयनकर्ताओं की अग्निपरीक्षा लेते हैं जो उनके लिए लगभग 4 से 5 दिनों तक धूप और हवाओं के थपेड़ों को झेलने के लिए मैदान में सुबह से शाम तक घंटो पसीना बहाया करते हैं।
संघ के अव्वल दर्जे के पदाधिकारियों को उन चयनकर्ताओं की परख पर शायद भरोसा न के बराबर रहता है तभी उनके चुने खिलाड़ियों की सूची को बारी-बारी से परखने का काम करते हैं और टीम पर अपनी अंतिम मुहर लगाने का काम करते हैं। संघ के इतिहास में तो ऐसा पूर्व के दशकों में नहीं देखा गया लेकिन बीते 7 से 8 साल के भीतर चयनकर्ताओं की ओर से चुनी की गयी टीम में फेरबदल कुछ इस ओर इशारा अवश्य करते आ रहें हैं।
यूपीसीए के सूत्र बतातें हैं कि पहले निवर्तमान सचिव केवल चयनकर्ताओं की चुनी टीम को फाइनल करने का काम करते थे लेकिन उनके साथ रहकर उनके दोनों करीबियों ने अब अपने लोगों को टीम में स्थान दिलवाने के लिए चयनकर्ताओं पर दबाव डालना शुरु कर दिया। हद तो अब ये हो गयी है कि 15 खिलाड़ियों की टीम मैदान पर चयनकर्ता चुनने का काम करते हैं, जबकि प्लेइंग इलेविन दोनों की रजामन्दी से चुनी जाती है। जिसमें चयनकर्ताओं का कोई भी योगदान नहीं रहता।
सूत्र यह भी बतातें हैं कि कई खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने के लिए एक निदेशक स्तर के अधिकारी और एक और पूर्व सचिव के निजी सचिव से कई बार चयनकर्ताओं की थोड़ी कहासुनी भी हो चुकी है। जिसे अन्य पदाधिकारियों ने मध्यस्तता कर समझौता करवा दिया था। वहीं दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि उनका प्रभाव और दबाव प्रदेश के पूरे संघ के सदस्यों और पदाधिकारियों के साथ कर्मचारियों में भी परस्पर बना हुआ है। संघ के सभी निर्णयों पर बीते कई सालों से पूर्व सचिव की ही मुहर लग रही है।
गौरतलब है कि साल 2019 में सचिव की कुर्सी संभालने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर का संघ में प्रभुत्व स्थापित करने में एक और पूर्व सचिव राजीव शुक्ला का हाथ रहा। जबकि सचिव पद पर रहते हुए तो उनके किए निर्णय सभी लोगों को मान्य रहे। उनके कूलिंग पीरियड में जाते ही फिरोजाबाद के प्रदीप गुप्ता को कमान मिली तो भी उनको निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया गया। इसके बाद संयुक्त सचिव मोहम्मद फहीम को कार्यभार प्रभार मिला तो भी उनके बीच निर्णयों को लेकर मतभेद उभरे। साल 2021 के नवम्बर में न्यूजीलैण्ड के खिलाफ ग्रीनपार्क में खेले गए मैच में भी निर्णय मेरठ में बैठे असिस्टेंट प्रोफेसर और भाई ही ले रहे थे।
यूपीसीए के सूत्र बतातें हैं कि बीते साल 2022 के अन्त में अरविन्द श्रीवास्तव को नए सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। इसके बाद भी सारे निर्णय मेरठ और सहारनपुर में लिए जा रहे थे। तब इसकी शिकायत बोर्ड और कोर्ट में की गयी तो समस्या का निराकरण करने की कोशिश की गयी। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। सूत्र यह भी बताते हैं कि लखनऊ का प्रभार होने के चलते आईपीएल समेत विश्वकप के मैच करवाने का निर्णय भी उन्ही दोनों की ओर से किया गया था। यूपीसीए के एक सदस्य के मुताबिक संघ में कई खिलाड़ियों को चयनकर्ता के रूप में शामिल किया गया। वह अपना काम भी बखूबी करते आ रहे हैं। लेकिन उनकी अग्निपरीक्षा नहीं होनी चाहिए। ऐसा करना उनकी कुशल परख क्षमता पर सवालिया निशान उठाता है। इससे संघ को बचना चाहिए। इस बारे में संघ के पूर्व चयनकर्ता ने बताया जब टीम चुनने के लिए टीम का गठन किया गया है तो उनकी अग्निपरीक्षा नहीं होनी चाहिए।