उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़के-लड़कियों द्वारा डेटिंग के मामलों में पुलिस कार्रवाई में भेदभाव के मुद्दे पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया है कि अगर एक नाबालिग लड़का और लड़की एक साथ डेट पर जा रहे हैं तो लड़की के माता-पिता की शिकायत के बाद केवल नाबालिगों को ही क्यों गिरफ्तार किया जाना चाहिए?
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की पीठ ने उत्तराखंड सरकार से यह देखने को कहा कि क्या सीआरपीसी की धारा 161 के तहत इतनी नाबालिग लड़की को गिरफ्तार न करने और उसे रिहा करने के लिए बयान लेना पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से पूछा कि क्या नाबालिग को गिरफ्तार करना जरूरी है? “ऐसे मामलों में, किशोर को पुलिस स्टेशन बुलाया जा सकता है और भविष्य में ऐसे मामलों में शामिल न होने की सलाह दी जा सकती है, लेकिन किशोर को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।” एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार को ऐसे मामलों की जांच कर पुलिस को निर्देश देने का निर्देश दिया था.
ऐसे 20 किशोर हल्द्वानी जेल में कैद : याचिकाकर्ता
दरअसल वकील मनीषा भंडारी ने अपनी जनहित याचिका में लैंगिक असमानता का मुद्दा उठाया है. याचिका में कहा गया है कि सहमति से बने संबंधों के मामलों में भी दुल्हन को पीड़िता के तौर पर देखा जाता है. दूसरी ओर, एक नाबालिग को यह कहकर जेल में डाल दिया जाता है कि ऐसी चीजें अपराध हैं। वकील मनीषा भंडारी ने दावा किया कि उन्हें हलद्वानी जेल में ऐसे 20 किशोर कैदी मिले. वकील की दलील के आधार पर हाई कोर्ट ने सवाल उठाया कि ऐसे मामले में केवल नाबालिगों को ही क्यों गिरफ्तार किया जाए? ऐसे में उन्हें सलाह देने के लिए पुलिस स्टेशन बुलाना ही काफी होगा. इस मामले में अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी.