Traditional Desserts : लुप्त होती भारतीय मिठाइयां, त्योहारों से गुम होती परंपराओं की मिठास

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News India Live, Digital Desk: Traditional Desserts : एक समय था जब भारतीय त्योहारों का मतलब घरों में बनी विभिन्न प्रकार की स्वादिष्ट मिठाइयां होती थीं। यह सिर्फ भोजन नहीं था, बल्कि कला, परंपरा और अपनों के प्रति प्रेम का प्रतीक था। दादी-नानी के हाथ से बनी इन मिठाइयों की सुगंध से घर महक उठते थे। लेकिन, आज समय बदल गया है। पैकेट बंद मिठाइयां और वेस्टर्न डेज़र्ट के बढ़ते चलन ने हमारी कई पारंपरिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण मिठाइयों को हाशिये पर धकेल दिया है। ऐसा लगता है कि हम अपनी रसोई की विरासत को खो रहे हैं, जिससे न केवल स्वाद बल्कि त्योहारों की आत्मा भी प्रभावित हो रही है।

आइए देखें, वो कौन सी मिठाइयां हैं जिनकी मिठास आज के त्योहारों से गायब हो गई है:

मैसूर पाक: कर्नाटक की यह प्रसिद्ध मिठाई, जो घी, बेसन, और चीनी से बनती है, एक समय त्योहारों और विशेष अवसरों पर प्रमुखता से परोसी जाती थी। इसकी चिकनी, दानेदार बनावट और शुद्ध घी का स्वाद लाजवाब होता था। लेकिन, आजकल यह उतनी आम नहीं है।

दूध पेड़ा: दूध और चीनी से बना यह सफेद पेड़ा, जिसे अक्सर इलायची और केसर से सुगंधित किया जाता था, मंदिरों में प्रसाद के रूप में भी दिया जाता था। इसकी सादगी में ही इसकी खूबसूरती और मिठास थी, जो अब दुकानों पर कम और घरों से लगभग गायब ही हो चुकी है।

फिरनी: चावल के आटे, दूध और चीनी से बनी यह ठंडी मिठाई, खासकर ईद और रमजान के दौरान काफी लोकप्रिय होती थी। इसकी मखमली बनावट और सूखे मेवों से सजावट इसे खास बनाती थी। अब फिरनी को भी उतने उत्साह से बनाते या परोसते नहीं देखा जाता।

कडा प्रसाद: सिख धर्म में कड़ा प्रसाद, घी, आटा और चीनी से बना एक पवित्र प्रसाद है, जो गुरुद्वारों में वितरित किया जाता है। इसकी शुद्धता और पोषण मूल्य इसे अद्वितीय बनाते हैं। यह विशेष अवसरों और गुरुपर्वों पर आज भी महत्वपूर्ण है, लेकिन आम तौर पर अन्य त्योहारों के उत्सव से यह गुम हो चुका है।

खीरा या लापसी: खासकर राजस्थान और गुजरात में लोकप्रिय यह पारंपरिक मिठाई, दलिया, घी, और गुड़ या चीनी से बनती थी। यह अक्सर त्योहारों और शुभ अवसरों पर बनाई जाती थी क्योंकि यह ऊर्जा और पोषण से भरपूर होती थी। इसकी ग्रामीण सादगी और स्वाद ने इसे लोकप्रिय बनाया था, लेकिन अब इसका स्थान अन्य आधुनिक मिठाइयों ने ले लिया है।

इन मिठाइयों का लुप्त होना न केवल culinary diversity के लिए एक झटका है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामूहिक यादों का भी नुकसान है। हमें अपनी इन विरासत की मिठाइयों को पुनर्जीवित करने और नई पीढ़ियों तक उनका स्वाद पहुँचाने की आवश्यकता है

 

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