पारंपरिक कला रूप अभी भी हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा: डॉ.अर्चना सिंह

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कानपुर, 22 अक्टूबर(हि.स.)। पारंपरिक कला रूप अभी भी हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह बात मंगलवार को चन्द्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान महाविद्यालय के ‘वस्त्र एवं परिधान विभाग’ में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए वस्त्र एवं परिधान विभाग के प्रभारी डॉ.अर्चना सिंह ने कही।

उन्होंने कहा कि मधुबनी और इकत जैसी पारंपरिक कला रूपों को बढ़ावा देना एवं महिला सशक्तिकरण के साथ साथ उद्योग को बढ़ावा देना भी था। कार्यशाला की सफलता ने यह साबित किया कि पारंपरिक कला रूप अभी भी हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

सीएसए के मीडिया प्रभारी डॉ.खलील खान ने बताया कि गृह विज्ञान महाविद्यालय के ‘वस्त्र एवं परिधान विभाग’ में एक दिवसीय कार्यशाला ‘ट्रेडिशनल ग्लोबल आर्ट फॉर्म्स : इकत एवं मधुबनी’ का आयोजन विभाग के ‘डाइंग एवं प्रिंटिंग’ लैब में किया गया।

कार्यशाला का शुभारम्भ वस्त्र एवं परिधान विभाग की प्रभारी डॉक्टर अर्चना सिंह की उपस्थिति में किया गया।कार्यशाला की शुरुआत मधुबनी और इकत कला के ऐतिहासिक परिचय से हुआ । इस अवसर पर छात्राओं को सबसे पहले विभिन्न प्रकार की मधुबनी डिजाइंस का प्रशिक्षण विभाग की शिक्षिका डा.इति दुबे के द्वारा दिया गया। जिसके बाद फेविक्रिल कंपनी की आर्ट एक्सपर्ट पारुल अग्रवाल के द्वारा मधुबनी कला की विभिन्न डिजाइनों में आकर्षक ढंग से रंग भरने की कलाकारी सिखाई गई।

कम्यूनिटी साइंस के स्नातक द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ वर्ष की छात्राओं ने बड़ी ही रुचि से मधुबनी की डिजाइंस को पाउच पर पेंट करना सीखा। कार्यशाला का आयोजन डा. इति दुबे के अथक प्रयास एवं कुशल नेतृत्व में हुआ।