देहरादून/ऋषिकेश, 11 मई (हि.स.)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि अहंकार को कम करने के लिये आत्मनिरिक्षण ही आधाशिला है। श्रीमद् कथा हमें जीवन के भवसागर से पार लगाती है। चाहे वह जीवन की समस्याओं का, संबंधों का या विचारों का भंवर हो प्रभु नाम सारे भंवरों से पार लगाकर एक आशा का किनारा प्रदान करता है।
शनिवार को परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने श्रीमद्भागवत कथा के समापन के अवसर पर गुजरात सहित भारत के अन्य राज्यों से आये भक्तों व श्रद्धालुओं से यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने विश्व अहंकार दिवस के अवसर पर अहंकार के विषय में जागरूक करते हुए कहा कि हमारे ही विचारों की साजिश कि ’’मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ’’ को हमारे सामने लाने और उसे माइक्रोस्कोप की तरह सूक्ष्मता से परखने का अवसर आज का दिन हमें देता है। कई बार हमें पता ही नहीं चलता कि हमारा अहंकार देखते ही देखते कितना बड़ा हो जाता है जो हमारे कार्यों व रिश्तों को भी प्रभावित करता है। आज का दिन हमें यह अवसर देता है कि क्या वास्तव में मैं जो सोच, बोल और कर रहा हूँ यह मैं या मेरा अहंकार कर रहा है? इस पर चिंतन करना बहुत जरूरी है ताकि हम अपने दृष्टिकोण और व्यवहार के प्रति सचेत रह सके।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि आज का दिन हमें एक अवसर प्रदान करता है कि अब हम एक कदम पीछे हट कर अपने भीतर रहने वाले अहंकार की जांच करें और विश्व को नई दृष्टि से देखें। वास्तव में यह एक छोटा सा विचार है परन्तु इस पर गौर किया जायें तो यह हम सब की विश्व बदल देगा और हमारे जीवन को सौम्य व सरल बना देगा। जैसे ही हम अपने अहंकार पर ध्यान देने लगेंगे जीवन से तनाव कम होने लगेगा और दूसरों के प्रति सहानुभूति और समझ में भी वृद्धि होगी।
स्वामी ने कथा व्यास यग्नेश भाई ओझा और भलाला यजमान परिवार को आशीर्वाद स्वरूप रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया। श्रीमद् भागवत कथा में प्रवीण भाई भलाला, यज्ञ भाई और सूरत, गुजरात से आये भलाला परिवार ने परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में सात दिनों तक श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण, गंगा स्नान, योग, ध्यान, सत्संग व विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में सहभाग किया। सभी ने इस दिव्य वातावरण में कथा श्रवण करने का अवसर प्रदान करने के लिए स्वामी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।