चीन के खिलाफ सड़कों और उतरी तिब्बती महिलाएं, मैक्लोडगंज से धर्मशाला तक निकाला मार्च

धर्मशाला, 12 मार्च (हि.स.)। निर्वासित तिब्बती महिलाओं ने मंगलवार को राष्ट्रीय तिब्बती महिला विद्रोह दिवस के मौके पर चीन के खिलाफ विरोध मार्च निकाला। इस दौरान तिब्बती महिला एसोसिएशन के नेतृत्व में सैंकड़ों तिब्बती महिलाओं ने अपने संघर्षमयी जीवन के इतिहास के पन्नों को याद करते हुये फिर से आज ही के दिन घटित हुई उस घड़ी को याद करते हुये चीन के खिलाफ धर्मशाला की मैक्लोडगंज में प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन में शामिल तिब्बती महिलाओं का आरोप था कि चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ वे 12 मार्च 1959 को तिब्बत के पोटाला में एकत्रित होकर अपने भविष्य की रणनीति पर गहनता के साथ विचार-विमर्श कर रही थीं, और बेहद शालीन तरीके से चीन का बहिष्कार करते हुये गो बैक चाइना के नारे लगा रही थीं, मगर चीन ने उस दिन उनकी महिलाओं का बड़ी ही निर्दयता के साथ दमन कर दिया था। कई महिलाओं को जेलों में डाल दिया तो कईयों की हालत बद् से बद्दतर हो गई। नतीजतन वहां स्थिति आज भी ज्यों की त्यों बरकार है। वहां लगातार आज भी महिलाओं का शोषण हो रहा है, चीन वहां की महिलाओं के मानव अधिकारों का लगातार हनन कर रहा है।

निर्वासित महिलाओं का कहना था कि वे आज भी तिब्बत की आजादी के लिये संघर्ष कर रहे हैं जिसके लिये उन्होंने बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा के मध्यवर्गी रास्ते शांती और अहिंसा के का मार्ग अपनाया हुआ है जिसके तहत दुनियाभर में चाइना की खिलाफत की जा रही है। उन्होंने कहा कि हमें चीन की सरकार से वहां और कुछ नहीं चाहिये, बल्कि तिब्बत के जीवन की जो मूल शैली है जिसमें उनकी भाषा, बोली, परंपराएं, विरासत, संस्कृति और सभ्यता शामिल है उसे नुकसान न पहुंचाकर उसे यथावत सुचारू रखा जाये, यहां तक कि उसे सहेजना की उन्हें अनुमति दी जाये।