गोवर्धन पूजा के जरिये श्रीकृष्ण ने दिया पर्यावरण और जैव विविधता के संरक्षण का संदेश – मेहता 

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उदयपुर, 2 नवंबर (हि.स.)। पूरे देश में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जा रहा है। इस अवसर पर आयोजित एक परिचर्चा में पर्यावरणविद् डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बृजवासियों को सुख, समृद्धि, और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा का संदेश दिया गया था, जो आज भी प्रासंगिक है।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का यह संदेश पहाड़ों, पेड़ों, और पशुओं के संरक्षण की आवश्यकता को उजागर करता है। पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण के महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान ने जन-जन को इन प्राकृतिक संसाधनों से जोड़ दिया था।

डॉ. मेहता ने कहा कि गोवर्धन पूजा का यह दिन पर्वतों और पहाड़ियों के संरक्षण के संकल्प का प्रतीक है। इस दिन हमें याद रखना चाहिए कि हाइड्रोलॉजी, इकोलॉजी, और बायोडायवर्सिटी की दृष्टि से पहाड़ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इन्हें बचाकर हम स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं। वर्तमान जलवायु संकट के समय में श्रीकृष्ण के पर्वत संरक्षण के संदेश को अपनाने और उसे व्यवहार में लाने की आवश्यकता है।

अरावली ग्रीन वॉल परियोजना: संरक्षण का संकल्प

विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला, अरावली, वर्तमान में गंभीर संकट का सामना कर रही है। शहरीकरण, होटल, रिजॉर्ट, और अन्य निर्माणों के कारण इसकी जल प्रवाह व्यवस्था और जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है, जिससे यह क्षेत्र बाढ़ और मरुस्थलीकरण के संकट की ओर बढ़ सकता है। केंद्र सरकार ने इस संकट को रोकने के लिए अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट शुरू किया है। पोरबंदर से पानीपत तक 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी ग्रीन बेल्ट इस योजना का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पश्चिमी रेगिस्तान के विस्तार को रोकना और अरावली की जैव विविधता को पुनर्स्थापित करना है।

सर्वाेच्च न्यायालय ने भी अरावली में खनन पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, अरावली को केवल ग्रीन वॉल परियोजना या खनन रोकने से ही नहीं बचाया जा सकता। जब तक शहरीकरण और व्यावसायिक निर्माण के लिए अरावली को काटे जाने से नहीं रोका जाएगा, इसका क्षरण जारी रहेगा।

गोवर्धन पूजा का यह दिन हमें सचेत करता है कि हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति जागरूक हों। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का संदेश देता है, और हमें अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बोध कराता है।