कभी खंडहर था ये स्कूल, आज देश की राष्ट्रपति करेंगी इस टीचर को सलाम!
शिक्षक दिवस... यह दिन सिर्फ़ अपने पुराने शिक्षकों को याद करने का नहीं, बल्कि उन गुमनाम नायकों को सम्मानित करने का भी है, जो चुपचाप इस देश की नींव गढ़ रहे हैं। आज जब दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश के 44 सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करेंगी, तो उन सितारों के बीच एक नाम ऐसा भी होगा, जिसकी कहानी सुनकर आपका दिल गर्व से भर जाएगा।
यह कहानी है मधुरिमा तिवारी की। यह कहानी सिर्फ एक टीचर की नहीं, बल्कि एक जिद और जुनून की है, जिसने एक खंडहर को शिक्षा के मंदिर में बदल दिया।
जब मिली टूटी हुई दीवारों की ज़िम्मेदारी
कल्पना कीजिए एक ऐसे स्कूल की, जहाँ छत से पानी टपकता हो, दीवारें टूटी हों और बच्चे धूल-मिट्टी में बैठने को मजबूर हों। जब मधुरिमा तिवारी की पोस्टिंग इस स्कूल में हुई, तो उनके सामने एक ऐसी ही तस्वीर थी। कोई और होता तो शायद हिम्मत हार जाता या अपना ट्रांसफर कराने की जुगत में लग जाता। लेकिन मधुरिमा ने उन टूटी हुई दीवारों में भविष्य के सपने देखे।
उन्होंने ठान लिया कि वह इस जगह की तकदीर बदलकर रहेंगी। यह काम आसान नहीं था। लेकिन मधुरिमा ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने प्रयासों से, और गाँव के लोगों को साथ जोड़कर, उस खंडहर हो चुके स्कूल का कायापलट करना शुरू किया।
जहाँ कभी वीरानी थी, आज वहाँ बच्चों की किलकारियां गूंजती हैं
मधुरिमा की मेहनत रंग लाई। उन्होंने उस खंडहर को न सिर्फ एक इमारत बनाया, बल्कि उसे एक ऐसा जीवंत स्कूल बना दिया, जहाँ आज बच्चे खुशी-खुशी पढ़ने आते हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर एक शिक्षक ठान ले, तो वह सिर्फ बच्चों का ही नहीं, बल्कि एक पूरे स्कूल का भविष्य संवार सकता है।
आज शिक्षक दिवस के इस महान अवसर पर, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित करेंगी, तो यह सम्मान सिर्फ मधुरिमा का नहीं होगा। यह उस हर शिक्षक का सम्मान होगा जो सीमित संसाधनों के बावजूद हर रोज एक नया चमत्कार कर रहा है।
मधुरिमा तिवारी जैसे शिक्षक ही इस देश की असली नींव हैं, और उनकी कहानी हमें यह यकीन दिलाती है कि उम्मीद और मेहनत से कुछ भी बदलना संभव है।
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