गोविंदा की बेटी टीना आहूजा अपने हालिया बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने पीरियड्स के दर्द को लेकर एक ऐसा दावा किया, जिसने सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा कर दिया। टीना ने कहा कि “पीरियड्स का दर्द केवल दिल्ली और मुंबई की लड़कियों को होता है,” और इसे एक साइकोलॉजिकल इशू बताया। उनके इस बयान पर जनता और हेल्थ एक्सपर्ट्स ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
टीना का तर्क: लाइफस्टाइल और डाइट को बताया जिम्मेदार
टीना आहूजा ने अपने बयान में कहा कि पीरियड्स का दर्द जीवनशैली और खानपान की वजह से होता है। उन्होंने खुद को देसी बॉडी वाली बताते हुए कहा कि उन्हें कभी बैक पेन या क्रैम्प्स नहीं होते। उनके अनुसार, यह दर्द मुख्य रूप से एक मानसिक स्थिति का परिणाम है और सही डाइट और स्वस्थ जीवनशैली से इसे कम किया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर भारी आलोचना
टीना के इस बयान पर सोशल मीडिया पर लोगों ने जमकर नाराजगी जताई।
- एक यूजर ने लिखा, “हर किसी का शरीर अलग होता है और दर्द का अनुभव भी अलग। इसे सिर्फ लाइफस्टाइल पर थोपना गलत है।”
- दूसरे ने कहा, “पीरियड्स का दर्द एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है, इसे साइकोलॉजिकल कहना महिलाओं की समस्याओं को नज़रअंदाज करने जैसा है।”
मेडिकल एक्सपर्ट्स की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने टीना के इस बयान को खारिज किया।
- पीरियड्स का दर्द बायोलॉजिकल है: विशेषज्ञों ने बताया कि पीरियड्स के दौरान दर्द गर्भाशय की मांसपेशियों के संकुचन और हार्मोनल बदलाव के कारण होता है। यह किसी खास शहर या जीवनशैली पर निर्भर नहीं करता।
- महिलाओं की समस्याओं का सामान्यीकरण गलत: एक्सपर्ट्स का कहना है कि हर महिला का अनुभव अलग होता है और इस तरह का बयान न केवल अनसाइंटिफिक है, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य मुद्दों को हल्के में लेने जैसा है।
फैमिली बैकग्राउंड और विवाद का असर
टीना, बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता गोविंदा और सुनीता आहूजा की बेटी हैं। सुनीता अक्सर अपनी बेबाक राय के लिए जानी जाती हैं, और ऐसा लगता है कि टीना ने भी यह स्वभाव उनसे सीखा है। हालांकि, उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है।
- ट्रोलिंग और आलोचना: टीना को इस बयान के बाद से भारी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है।
- माफी की मांग: कई यूजर्स ने टीना से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की है।
क्या कहता है यह विवाद?
टीना आहूजा का यह बयान महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ी बहस का कारण बन गया है। हेल्थ एक्सपर्ट्स और सोशल मीडिया यूजर्स का कहना है कि इस तरह के अनसाइंटिफिक बयान महिलाओं की समस्याओं को हल्के में लेने और गलत जानकारी फैलाने का काम करते हैं।