वो कहानी, जिसके बिना अधूरा है करवा चौथ का हर व्रत... यहां पढ़ें पूरी कथा
Karwa Chauth Vrat Katha In Hindi: सुबह की सरगी, दिन भर का इंतजार, शाम का सोलह श्रृंगार, और फिर पूजा की थाली। इस पूरे दिन में अगर कोई चीज इस व्रत की ‘आत्मा’ है, तो वह है करवा माता की कथा।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक परंपरा है, एक विश्वास है, जिसे सुने बिना यह कठिन व्रत और पूजा कभी पूरी नहीं मानी जाती। जब सब महिलाएं एक साथ गोल घेरा बनाकर बैठती हैं, अपनी पूजा की थालियां घुमाती हैं और एक महिला इस कहानी को सुनाती है, तो उस पल में मानो साक्षात देवी का वास होता है।
तो चलिए, आज हम भी सुनते हैं वही चमत्कारी और पावन कथा।
करवा चौथ व्रत की कथा
बहुत समय पहले की बात है। एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी, जिसका नाम था वीरवती। वीरवती अपने सातों भाइयों की अकेली और लाडली बहन थी, और सब उसे जान से भी ज्यादा प्यार करते थे।
जब वीरवती की शादी हुई, तो शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वह अपने मायके आई हुई थी। उसने अपनी भाभियों के साथ, अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का निर्जला (बिना पानी पिए) व्रत रखा।
शाम हुई, पूजा हुई... पर चांद निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था। भूख-प्यास से वीरवती का हाल बेहाल हो गया। भाइयों से अपनी प्यारी बहन का यह दुख देखा नहीं गया। वे सब जानते थे कि जब तक चांद नहीं निकलेगा, उनकी बहन पानी तक नहीं पिएगी।
तब उन सातों भाइयों ने एक योजना बनाई। वे घर से दूर एक पीपल के पेड़ के पीछे गए और वहां एक बड़ा सा आईना लगाकर, आग जला दी। दूर से देखने पर ऐसा लग रहा था मानो चांद निकल आया हो।
एक भाई ने घर आकर अपनी बहन से कहा, "देखो वीरवती, चांद निकल आया है, चलो अर्घ्य देकर व्रत खोल लो।"
अपनी भोली बहन ने भाइयों की बात पर यकीन कर लिया और उस नकली चांद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लिया। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही उन्होंने खाने का पहला निवाला मुंह में रखा, उन्हें अपने ससुराल से पति के बीमार होने की खबर मिली।
जब वह रोती-बिलखती अपने ससुराल पहुंची, तो देखा कि उसके पति मरणासन्न अवस्था में हैं। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया कि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत समय से पहले ही तोड़ दिया है।
उसने अपनी भूल के लिए पश्चाताप करना शुरू किया और अपने पति की दिन-रात सेवा में लग गई। एक साल बाद, जब करवा चौथ का दिन फिर से आया, तो वीरवती ने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ व्रत रखा। उसकी इस सच्ची भक्ति और तपस्या से करवा माता प्रसन्न हुईं और उन्होंने उसके पति को फिर से जीवनदान दे दिया।
तभी से यह मान्यता है कि इस व्रत को पूरे विश्वास और सही विधि से ही करना चाहिए।
इस कहानी का महत्व:
यह कहानी हमें सिखाती है कि यह व्रत सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा, धैर्य और विश्वास की परीक्षा भी है। माँ करवा आप सबकी मनोकामना पूरी करें!
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