हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 लोगों की मौत के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय रेलवे से कड़े सवाल पूछे हैं।
➡️ अदालत ने रेलवे से यह सुनिश्चित करने को कहा कि डिब्बों की निर्धारित क्षमता से अधिक टिकट न बेचे जाएं।
➡️ मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा:
“अगर आपने डिब्बे में यात्रियों की एक सीमा तय की है, तो फिर उससे ज्यादा टिकट क्यों बेचे जाते हैं?”
कोर्ट ने रेलवे को फटकार लगाई
➡️ अदालत ने कहा:
“अगर आप एक साधारण कदम भी उठा लेते, तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता था। लेकिन डिब्बे में यात्री संख्या तय न करना, एक बड़ी चूक है।”
➡️ याचिका में रेलवे एक्ट की धारा 57 और 147 का हवाला दिया गया, जो अधिक भीड़-भाड़ और अवैध यात्रियों की रोकथाम के लिए बनाए गए हैं।
➡️ कोर्ट ने रेलवे को निर्देश दिया कि वह यह बताए कि बिना अनुमति के यात्रियों के प्रवेश को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।
रेलवे को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश
➡️ हाईकोर्ट ने आदेश दिया:
“रेलवे बोर्ड को इस मामले की उच्चतम स्तर पर जांच करनी होगी और लिए गए निर्णयों की रिपोर्ट हलफनामे के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत करनी होगी।”
➡️ अगली सुनवाई अगले महीने होगी।
सॉलिसीटर जनरल का जवाब
➡️ तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि:
“रेलवे कानून का पालन करने के लिए बाध्य है और याचिका में उठाए गए मुद्दों को उच्चतम स्तर पर ध्यान में लिया जाएगा।”
➡️ उन्होंने इस घटना को “अप्रत्याशित स्थिति” बताया, लेकिन कहा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
हाईकोर्ट का निष्कर्ष: बेहतर नियम होते, तो हादसा टल सकता था
✅ यह जनहित याचिका सिर्फ हालिया भगदड़ से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह रेलवे में भीड़ प्रबंधन और प्लेटफॉर्म टिकट बिक्री से संबंधित मौजूदा नियमों के सही क्रियान्वयन की मांग करती है।
✅ अगर रेलवे ने सही ढंग से नियमों को लागू किया होता, तो शायद इस घटना से बचा जा सकता था।
अब देखने वाली बात यह होगी कि रेलवे इस मामले में क्या कदम उठाता है और कोर्ट के निर्देशों का पालन कैसे करता है।