नैनीताल, 07 मई (हि.स.)। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने वन विभाग के नैनीताल के पंगुट क्षेत्र स्थित पक्षी अभ्यारण की जद में आए करीब आधा दर्जन गांवों का रास्ता बंद किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।
मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने इस क्षेत्र के वाशिन्दों को निर्देश दिए हैं कि वे इस प्रतिबंध को स्वयं हटा सकते हैं क्योंकि अधिकारी लोग वनाग्नि में व्यस्त हैं। वन विभाग इसके खिलाफ कोई भी विभागीय कार्रवाई उनके खिलाफ नही करेगा।
आज हुई सुनवाई पर वन विभाग की तरफ से दायर शपथपत्र में कहा गया कि उनके द्वारा पक्षी अभ्यारण क्षेत्र में रह रहे लोगों के आने जाने के रास्ते जो पूर्व में बंद कर दिए गए थे, उनको खोल दिया गया है। जबकि इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि तीन रास्तों में से विभाग ने केवल एक रास्ता खोला गया है बाकी दो रास्ते अभी भी बंद है उनको भी खोला जाये।
ये रास्ते बंद होने के कारण अभी भी इस क्षेत्र के आधा दर्जन गांव मुख्य मोटर मार्ग से वंचित हैं, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में रह रहे लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गों को सही समय पर कोई मेडिकल सुविधा उपलब्ध नही हो पा रही है। जबकि वे इस क्षेत्र में 1890 से रहे हैं। विभाग का कानून खुद कहता है कि जो लोग 1980 से पहले रिर्जव फोरेस्ट में रह रहे हैं, उनको प्रकृति के द्वारा दी गयी सुविधा पर कोई असुविधा नही देगा। जबकि वे 1890 से इस क्षेत्र रह रहे हैं।
2008 में पक्षी अभ्यारण बनने के बाद विभाग हमेशा कई तरह प्रतिबंध लगाता आ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक वन विभाग के कई रेस्ट हाउसों, पक्की रोड पर गाड़ियां खड़ी हुई हैं या तो हमारा रास्ता खोलें या फिर सभी रास्ते बंद करें।