महाभारत का वो योद्धा, जिसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण को भी छल का सहारा लेना पड़ा
News India Live, Digital Desk: महाभारत के युद्ध में एक से बढ़कर एक शक्तिशाली योद्धा थे, लेकिन एक ऐसा भी योद्धा था जिसकी ताकत के आगे बड़े-बड़े महारथी भी फीके थे। यह वीर था भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक, जिसे आज दुनिया खाटू श्याम जी के नाम से पूजती है। उनकी कहानी वीरता, वचन और त्याग की एक ऐसी मिसाल है जो आज भी लोगों को हैरान कर देती है।
कौन था यह महावीर?
बर्बरीक बचपन से ही अत्यंत वीर और अपनी माता के भक्त थे। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे तीन ऐसे अमोघ बाण प्राप्त किए जो अपने लक्ष्य को भेदकर ही लौटते थे। इन तीन बाणों में इतनी शक्ति थी कि बर्बरीक अकेले ही पूरी महाभारत को एक मिनट में समाप्त कर सकते थे।
माँ को दिया हुआ वचन
जब महाभारत का युद्ध छिड़ा, तो बर्बरीक ने भी इसमें शामिल होने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी माँ को वचन दिया था कि वह युद्ध में हमेशा कमजोर और हारने वाली सेना का साथ देंगे। उनका यही वचन आज भी "हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा" के रूप में गूंजता है।
जब श्रीकृष्ण ने लिया इम्तिहान
जब श्रीकृष्ण को पता चला कि बर्बरीक युद्ध में शामिल होने आ रहे हैं, तो वे उनकी शक्ति और वचन से चिंतित हो गए। उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक को रास्ते में रोक लिया। श्रीकृष्ण ने उनकी हंसी उड़ाते हुए पूछा कि क्या वह केवल तीन बाणों से युद्ध लड़ने आए हैं? इस पर बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण पूरी शत्रु सेना को समाप्त करने के लिए काफी है।
श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा लेने के लिए पास में मौजूद एक पीपल के पेड़ की ओर इशारा किया और कहा कि अगर तुम एक ही बाण से इस पेड़ के सारे पत्तों को छेद दो, तो मैं तुम्हारी शक्ति मान जाऊंगा। बर्बरीक ने जैसे ही बाण चलाया, उसने एक-एक कर पेड़ के सभी पत्तों को छेद दिया। यहाँ तक कि एक पत्ता जो श्रीकृष्ण ने अपने पैर के नीचे छिपा रखा था, बाण उसे भी भेदने के लिए उनके पैर के चक्कर काटने लगा।
क्यों मांगना पड़ा शीश का दान?
बर्बरीक की यह अद्भुत शक्ति देखकर श्रीकृष्ण समझ गए कि यदि यह युद्ध में शामिल हुआ तो अनर्थ हो जाएगा। उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि तुम अपने वचन के कारण जिस भी हारती हुई सेना का साथ दोगे, वह तुम्हारी शक्ति से जीतने लगेगी। फिर दूसरी सेना कमजोर हो जाएगी और अपने वचन को निभाने के लिए तुम्हें फिर से पाला बदलना पड़ेगा। इस तरह यह चक्र चलता रहेगा और अंत में युद्ध में केवल तुम ही जीवित बचोगे, जो धर्म की स्थापना के उद्देश्य के विरुद्ध होगा।
धर्म की रक्षा के लिए और युद्ध का सही परिणाम सुनिश्चित करने के लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से एक ऐसी गुरु दक्षिणा मांगी, जिसे सुनकर कोई भी कांप जाए। उन्होंने ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक से उनके शीश का दान मांग लिया। बर्बरीक अपने वचन के पक्के थे। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की।
श्रीकृष्ण ने उनकी इस वीरता और त्याग से प्रसन्न होकर उनके कटे हुए सिर को एक ऊंची पहाड़ी पर रख दिया, जहाँ से बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध अपनी आँखों से देखा। श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में उनकी पूजा उनके अपने नाम 'श्याम' से होगी और वे अपने भक्तों के सभी दुख-दर्द दूर करेंगे।
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