तमिलनाडु के सीएम एम. के. स्टालिन का त्रिभाषा फॉर्मूले और परिसीमन पर विरोध, दक्षिण बनाम उत्तर की बहस तेज

Mk Stalin 1740543830527 17405438

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने त्रिभाषा फॉर्मूले और प्रस्तावित परिसीमन को लेकर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी, तो वे भाषा और राजनीतिक अधिकारों के लिए एक और लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए उन्होंने 5 मार्च को तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियों की एक बैठक बुलाई है। इस बैठक में 2026 में होने वाले परिसीमन पर विशेष रूप से विचार किया जाएगा, जिसमें दक्षिण भारतीय राज्यों की लोकसभा सीटों में संभावित कटौती को लेकर चिंता जताई जा रही है।

परिसीमन को लेकर स्टालिन की चिंता

स्टालिन ने चेतावनी दी है कि परिसीमन के बाद तमिलनाडु की मौजूदा 39 लोकसभा सीटों में से 8 सीटें घट सकती हैं। उनका आरोप है कि उत्तर भारतीय राज्यों—यूपी, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश—की लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं, जिससे दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व कमजोर होगा। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या जनसंख्या नियंत्रण नीति को अपनाने की सजा दक्षिण भारतीय राज्यों को दी जाएगी?

स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों ने विकास और जनसंख्या नियंत्रण में अग्रणी भूमिका निभाई है, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर अभी भी अधिक बनी हुई है। ऐसे में परिसीमन के कारण सीटों में कटौती एक अन्यायपूर्ण कदम होगा।

युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा के तलाक की खबरें, सच क्या है और क्या है अफवाह?

दक्षिण भारतीय राज्यों में बढ़ सकता है विरोध

तमिलनाडु में इस मुद्दे को उठाने के बाद संभावना है कि कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी विरोध बढ़ेगा। इन राज्यों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है, और वह भी इस मुद्दे पर बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है। स्टालिन ने तमिलनाडु की 40 पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों को इस बैठक में आमंत्रित किया है ताकि इस प्रस्तावित परिसीमन के खिलाफ एकजुट रुख अपनाया जा सके।

स्टालिन का कहना है, “तमिलनाडु को उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। परिसीमन के नाम पर हमारे हक छीने जा रहे हैं। हमारी 39 सीटों को घटाकर 31 कर दिया जाएगा।”

कांग्रेस भी जता चुकी है चिंता

परिसीमन को लेकर कांग्रेस भी पहले से ही सवाल उठा रही है। 2019 में राज्यसभा में जयराम रमेश ने इस मुद्दे को उठाया था और मांग की थी कि सरकार स्पष्ट करे कि दक्षिण भारतीय राज्यों की लोकसभा सीटों में कटौती नहीं की जाएगी। उन्होंने उत्तर भारतीय राज्यों—यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड—का जिक्र करते हुए कहा था कि इनकी जनसंख्या वृद्धि दर अधिक रही है, जिससे इनकी लोकसभा सीटों में बढ़ोतरी हो सकती है।

स्टडी के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता

‘इंडियाज इमर्जिंग क्राइसिस ऑफ रिप्रजेंटेशन’ नामक एक रिसर्च पेपर के अनुसार, प्रस्तावित परिसीमन के कारण दक्षिण भारत की 24 लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जबकि उत्तर भारत में 32 सीटें बढ़ सकती हैं। अकेले उत्तर प्रदेश और बिहार की 21 सीटें बढ़ने की संभावना जताई गई है।

  • उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 91 हो सकती हैं।
  • बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 50 हो सकती हैं।
  • वर्तमान में लोकसभा में 543 सीटें हैं, जो 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई थीं।
  • 42वें संविधान संशोधन के तहत 1976 में परिसीमन को 25 साल के लिए रोक दिया गया था, जिसे 2001 में और 25 साल के लिए बढ़ा दिया गया।
  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, 2026 की जनगणना के बाद परिसीमन अनिवार्य हो जाएगा।

क्या परिसीमन दक्षिण बनाम उत्तर की बहस को और तेज करेगा?

परिसीमन का मुद्दा अब राजनीतिक रूप ले चुका है। स्टालिन इसे दक्षिण भारत के साथ भेदभाव के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार अभी तक इस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाई है। अगर यह मुद्दा बड़ा होता है, तो आने वाले चुनावों में दक्षिण भारत में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है।

तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों का तर्क है कि जनसंख्या नियंत्रण की नीति को सफलतापूर्वक लागू करने के बावजूद उन्हें सीटों में कटौती का सामना क्यों करना पड़ रहा है, जबकि उत्तर भारत की जनसंख्या वृद्धि दर अधिक होने के बावजूद वहां सीटें बढ़ाने की बात हो रही है।