सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बैंकों को स्पष्ट संदेश दिया कि वे ग्राहकों को उनके खातों से हुई अनाधिकृत लेनदेन की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि बैंकों को ग्राहक सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, खाता धारकों को भी सतर्क रहने और ओटीपी या अन्य संवेदनशील जानकारी किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा करने से बचने की सलाह दी।
मामले का विवरण
यह फैसला भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। एक ग्राहक के खाते से ₹94,204.80 की धोखाधड़ीपूर्ण लेनदेन की गई थी। यह घटना तब हुई जब ग्राहक ने ऑनलाइन शॉपिंग के बाद सामान लौटाने की प्रक्रिया के दौरान ठगी का शिकार हो गया।
कैसे हुई धोखाधड़ी?
ठग ने खुद को ग्राहक सेवा प्रतिनिधि बताते हुए ग्राहक से एक मोबाइल ऐप डाउनलोड करने को कहा। इसके बाद ग्राहक के खाते से अनाधिकृत लेनदेन किया गया। ग्राहक ने दावा किया कि उसने कभी भी ओटीपी या एम-पिन साझा नहीं किया। दूसरी ओर, एसबीआई ने तर्क दिया कि लेनदेन ग्राहक द्वारा जानकारी साझा करने के कारण हुआ।
आरबीआई के नियमों का हवाला
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इस मामले में ग्राहक के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एसबीआई को पूरी राशि लौटाने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने आरबीआई के 6 जुलाई 2017 के सर्कुलर का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि ग्राहक डेटा चोरी की घटना को तुरंत बैंक को रिपोर्ट करता है, तो वह अनाधिकृत लेनदेन के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
एसबीआई ने हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- ग्राहक ने धोखाधड़ी की घटना को 24 घंटे के भीतर बैंक को सूचित कर दिया था।
- बैंकों को अनाधिकृत लेनदेन रोकने के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।
- खाता धारकों को भी सतर्क रहना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में ओटीपी या पासवर्ड साझा नहीं करना चाहिए।