सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में धारा 498A के दुरुपयोग को लेकर सख्त चेतावनी दी है। अदालत ने कहा कि इस कानून का उपयोग “व्यक्तिगत बदले” के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ दर्ज मामलों में बढ़ते दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए आई है।
तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को पलटा
जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उन्होंने धारा 498A के तहत दर्ज एक क्रूरता के मामले को खारिज कर दिया, जिसे पहले तेलंगाना हाई कोर्ट ने खारिज करने से इनकार कर दिया था।
धारा 498A: विवाहित महिलाओं के अधिकार की सुरक्षा
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A या भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 86 का उद्देश्य महिलाओं को उनके पति और ससुराल पक्ष द्वारा की जाने वाली क्रूरता से बचाना है।
- इस कानून के तहत आरोपी को 3 साल या उससे अधिक की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है।
सबूत के बिना कार्रवाई का आधार नहीं
इस मामले में, महिला ने अपने पति के शादी को खत्म करने की याचिका के बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“केवल परिवार के सदस्यों का नाम लेना, बिना किसी ठोस सबूत के, उनके खिलाफ कार्रवाई का आधार नहीं बन सकता।”
अदालत ने यह भी कहा कि धारा 498A का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग परिवारों के बीच व्यक्तिगत रंजिश के लिए हो रहा है।
धारा 498A का दुरुपयोग बढ़ रहा है
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा:
- “हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में वृद्धि हुई है, और कुछ मामलों में धारा 498A का इस्तेमाल पति और उसके परिवार के खिलाफ बदले की भावना से किया जा रहा है।”
- अदालत ने कहा कि “अस्पष्ट और सामान्य आरोप” लगाकर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा रहा है।
मुकदमा चलाने के खिलाफ चेतावनी
अदालत ने साफ शब्दों में कहा:
- “कई बार पत्नी की अनुचित मांगों को पूरा करवाने के लिए पति और उसके परिवार पर धारा 498A लगा दी जाती है। ऐसे मामलों में अगर प्रथम दृष्टया कोई ठोस सबूत नहीं है, तो मुकदमा नहीं चलाना चाहिए।”
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि तेलंगाना हाई कोर्ट ने मामले को खारिज न करके “गंभीर गलती” की है।