सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट के एक भूमि अधिग्रहण संबंधी फैसले को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण के तुरंत बाद कोई निजी समझौता करके इसे रद्द नहीं किया जा सकता।
फैसले की प्रमुख बातें
- सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि को प्राइवेट डील के जरिए वापस देना गलत है।
- जनता के हित से जुड़े कार्यों में थर्ड पार्टी राइट्स का दखल नहीं होना चाहिए।
- इस तरह की डील्स से भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी को बढ़ावा मिल सकता है।
- 1988 का समझौता कानून का उल्लंघन था, जिसका उद्देश्य केवल भूमि वापस करना था।
मामले की पृष्ठभूमि
- 1963 में दिल्ली के नरेला-बवाना रोड पर अनाज मंडी के लिए भूमि अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी हुआ।
- 1986 में मुआवजा जारी हुआ, लेकिन तभी एक महिला ने भूमि पर दावा कर दिया।
- कृषि विपणन बोर्ड के चेयरमैन ने आधी जमीन वापस करने और आधी के लिए मुआवजा देने का फैसला किया।
- बोर्ड में विवाद हुआ और मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जिसने महिला के पक्ष में निर्णय दिया।
- अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया, यह कहते हुए कि सरकारी अधिग्रहण के बाद प्राइवेट डील अवैध है।
सरकारी भूमि अधिग्रहण को मिलेगी मजबूती
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हाईवे और अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया मजबूत होगी। यह निर्णय सरकार को थर्ड पार्टी राइट्स के कारण होने वाली कानूनी अड़चनों से बचाने में मदद करेगा।