Supreme Court order : मुस्लिम समाज की बड़ी जीत, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने कैसे बचा ली वक्फ की हजारों संपत्तियां?

Post

News India Live, Digital Desk: ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष और अजमेर शरीफ दरगाह के दीवान के आध्यात्मिक प्रमुख के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिल से स्वागत किया है। उन्होंने इस फैसले को देश के मुस्लिम समुदाय के लिए एक "ऐतिहासिक" और मील का पत्थर बताया है।

क्या था पूरा मामला और क्यों था विवाद?

दरअसल, केंद्र सरकार ने वक्फ एक्ट में एक संशोधन किया था। इस संशोधन का एक हिस्सा (धारा 10) वक्फ बोर्ड को यह अधिकार देता था कि अगर किसी संपत्ति पर लंबे समय से किसी और का कब्जा है या उसका मालिकाना हक किसी और के पास है, तो वक्फ बोर्ड उसे भी वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता था।

इस कानून को लेकर देशभर में, खासकर सूफी दरगाहों और खानकाहों के सज्जादानशीनों (प्रमुखों) के बीच गहरी चिंता थी। उन्हें डर था कि इस कानून का गलत इस्तेमाल करके उनकी निजी संपत्तियों को भी वक्फ बोर्ड अपने कब्जे में ले सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा और राहत भरा फैसला

इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए एक बेहद अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कर दिया कि वक्फ बोर्ड किसी की निजी संपत्ति पर अपना दावा नहीं कर सकता, भले ही वह संपत्ति किसी मुस्लिम की ही क्यों न हो। अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड सिर्फ उन्हीं संपत्तियों पर अधिकार रख सकता है जो कानूनी रूप से "वक्फ" यानी अल्लाह के नाम पर दान की गई हों।

दरगाह दीवान ने क्यों कहा इसे ऐतिहासिक?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। यह फैसला लाखों मुसलमानों, दरगाहों और सूफी संतों के अधिकारों की रक्षा करेगा।"

उन्होंने कहा कि इस फैसले ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि वक्फ बोर्ड अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके किसी की मेहनत से बनाई गई निजी संपत्ति को नहीं छीन सकता। यह न्याय और सच्चाई की जीत है, जिससे मुस्लिम समुदाय का देश की न्यायपालिका पर भरोसा और भी मजबूत हुआ है।

 

--Advertisement--