Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद में तलाक का आदेश दिया, पत्नी को 5 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वैवाहिक विवाद के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने पति-पत्नी के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को समाप्त करते हुए तलाक मंजूर किया और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को एकमुश्त 5 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता दे। इसके अलावा, बच्चे के भरण-पोषण और देखभाल के लिए 1 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान करने का भी आदेश दिया गया। यह फैसला जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने सुनाया।

दो दशक से अलग रह रहे थे पति-पत्नी

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) की शादी को 6 साल ही हुए थे जब उन्होंने एक-दूसरे से अलग होना शुरू कर दिया। इसके बाद करीब दो दशकों तक दोनों अलग-अलग रहे। इस लंबे समय के अलगाव ने शादी को पूरी तरह से बिखेर दिया था, जिससे पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं बची थी।

पति ने लगाए थे पत्नी पर गंभीर आरोप

पति ने अपने बयान में आरोप लगाया कि उसकी पत्नी हाइपरसेंसिटिव है और उसके परिवार के सदस्यों के साथ क्रूरता से पेश आती थी। उसने यह भी दावा किया कि पत्नी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रह पाई।

पत्नी के आरोप: पति का व्यवहार सही नहीं था

दूसरी ओर, पत्नी ने भी अपने पति पर आरोप लगाते हुए कहा कि पति का व्यवहार उसके प्रति ठीक नहीं था और उसने वैवाहिक जीवन को लेकर कई कठिनाइयों का सामना किया। दोनों पक्षों के आरोपों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि उनके बीच का रिश्ता इस हद तक खराब हो चुका था कि उसे फिर से सुधारना संभव नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: तलाक और गुजारा भत्ता

सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार करते हुए कि दोनों पक्ष 20 साल से अलग रह रहे थे और शादी में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची थी, तलाक का आदेश दिया। अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 5 करोड़ रुपये की एकमुश्त रकम गुजारा भत्ता के तौर पर दे। इसके साथ ही, बच्चे की परवरिश और देखभाल के लिए अतिरिक्त 1 करोड़ रुपये की व्यवस्था करने का भी आदेश दिया गया।

बेंच ने दिया पिता की जिम्मेदारी पर जोर

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने पिता की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा कि बच्चे का भरण-पोषण और देखभाल पिता का नैतिक और कानूनी दायित्व है। अदालत ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता बताई कि बच्चे को उसके विकास के लिए आवश्यक सभी संसाधन उपलब्ध हों।

कानूनी दृष्टिकोण: लंबी अवधि के अलगाव को माना आधार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि लंबे समय तक अलगाव और वैवाहिक जीवन में सुधार की कोई संभावना न होना, तलाक के लिए पर्याप्त आधार है। अदालत ने यह भी कहा कि जब पति-पत्नी के बीच कोई सामंजस्य नहीं बचता और रिश्ते में कड़वाहट आ जाती है, तो ऐसे मामलों में तलाक ही एकमात्र समाधान होता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. 5 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता पत्नी के लिए।
  2. 1 करोड़ रुपये का प्रावधान बच्चे की देखभाल और भरण-पोषण के लिए।
  3. पति को अपने बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी निभाने पर जोर दिया गया।
  4. लंबे समय के अलगाव को वैवाहिक संबंध समाप्त करने का उचित आधार माना गया।