सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए मंगलवार को कहा कि अवैध रूप से पेड़ काटने वालों पर कोई दया नहीं दिखाई जाएगी। कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रत्येक अवैध रूप से काटे गए पेड़ पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
पेड़ों की कटाई मानव हत्या से भी गंभीर: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध रूप से पेड़ काटना मानव हत्या से भी गंभीर अपराध है, क्योंकि इन पेड़ों के पुनर्निर्माण में कम से कम 100 साल का समय लग सकता है। कोर्ट ने यह कड़ा आदेश शंकर अग्रवाल द्वारा 454 पेड़ों की अवैध कटाई के मामले में सुनाया।
पेड़ संरक्षण को लेकर अदालत की सख्ती
सीनियर अधिवक्ता एडीएन राव ने ‘एमिकस क्यूरी’ के रूप में अदालत में प्रस्तुत होकर तर्क दिया कि अवैध पेड़ कटाई के मामलों में एक स्पष्ट और सख्त संदेश दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि अवैध कटाई करने वालों पर कड़ा जुर्माना लगेगा ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
454 पेड़ों की अवैध कटाई पर भारी जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की रिपोर्ट को स्वीकार किया, जिसमें शंकर अग्रवाल पर 454 पेड़ों की अवैध कटाई के लिए 1 लाख रुपये प्रति पेड़ जुर्माना लगाने का सुझाव दिया गया था।
CEC रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
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18 सितंबर की रात को 454 पेड़ अवैध रूप से काटे गए।
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इनमें से 422 पेड़ निजी भूमि ‘डालमिया फार्म’ पर थे।
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32 पेड़ संरक्षित वन क्षेत्र में काटे गए थे।
कोर्ट ने माफी की अपील ठुकराई
शंकर अग्रवाल के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, ने कोर्ट से जुर्माना कम करने की अपील की और कहा कि उनका मुवक्किल अपनी गलती स्वीकार करता है और माफी मांगता है। साथ ही उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि अग्रवाल कटे हुए पेड़ों के बदले नए पेड़ लगाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माना कम करने से इनकार कर दिया लेकिन अग्रवाल को वृक्षारोपण की अनुमति दी।
अग्रवाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के आदेश
सीईसी की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि अग्रवाल ने न केवल निजी भूमि पर, बल्कि संरक्षित वन क्षेत्र में भी पेड़ काटे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त प्रतिक्रिया दी और:
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अग्रवाल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया।
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उत्तर प्रदेश वन विभाग को निर्देश दिया कि वह ‘उत्तर प्रदेश पेड़ संरक्षण अधिनियम, 1976’ और ‘भारतीय वन अधिनियम, 1972’ के तहत सख्त दंडात्मक कार्रवाई करे।
पर्यावरण संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का संदेश
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार और नागरिकों के लिए एक सख्त चेतावनी है कि पर्यावरण से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियां हरे-भरे पर्यावरण का आनंद ले सकें।