सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा नियमित और अग्रिम जमानत आवेदनों को डिवीजन बेंच के माध्यम से सुनने की प्रथा पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने पूछा कि जब अन्य हाईकोर्ट में ये मामले एकल जज द्वारा सुने जाते हैं, तो कलकत्ता हाईकोर्ट में इन्हें डिवीजन बेंच क्यों सुना रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा, “जब जमानत आवेदनों की संख्या और लंबित मामलों का बोझ अधिक है, तो नियमित और अग्रिम जमानत आवेदन को डिवीजन बेंच क्यों सुना रहा है? अन्य हाईकोर्ट्स में तो यह एकल जज द्वारा होता है। क्या दो न्यायाधीशों को नियमित जमानत मामलों में समय देना उचित है?”
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) से इस प्रथा पर रिपोर्ट मांगी है और 2024 में दायर जमानत आवेदनों की जानकारी प्रस्तुत करने को कहा है। यह आदेश उस विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर जारी किया गया था, जिसमें एक हत्या मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के खिलाफ अपील की गई थी।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट में 1039 जमानत याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें 2019 की एक, 2022 की 102, 2023 की 127, 2024 की 711, और इस साल की 98 याचिकाएं शामिल हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ता साफीयर हुसैन को एक साल 11 महीने से हिरासत में रखा गया था। उन्होंने जमानत की मांग की थी। हाईकोर्ट ने पाया कि चार्जशीट किए गए गवाहों में से केवल आठ की गवाही हुई थी और यह संभावना नहीं थी कि मामला जल्दी निपट जाएगा।
बंगाल सरकार ने जमानत का विरोध करते हुए आरोपी के पास से एक बंदूक और छह राउंड कारतूस की बरामदगी का हवाला दिया था, साथ ही फोरेंसिक साक्ष्य भी प्रस्तुत किए थे। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह माना कि लंबी हिरासत बिना मुकदमे के आरोपी के मूल अधिकारों का उल्लंघन है और इसी आधार पर जमानत दी।