Student Enrolment : केंद्रीय विद्यालयों में छात्रों के दाखिले में भारी गिरावट पांच साल में 2.86 लाख छात्र कम हुए
News India Live, Digital Desk: Student Enrolment : केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच सालों में केंद्रीय विद्यालयों केवीएस में छात्रों के दाखिले में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। पांच साल की अवधि में इन स्कूलों में छात्रों की संख्या में कुल 2.86 लाख की कमी आई है। यह आंकड़ा भारत में सरकारी शिक्षा प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण विश्लेषण की ओर इशारा करता है।
केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने हाल ही में राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के जवाब में यह जानकारी प्रदान की है। आंकड़ों के अनुसार, शैक्षणिक सत्र 2019-20 में केन्द्रीय विद्यालयों में छात्रों का कुल नामांकन 14,35,856 था। हालांकि, यह संख्या बाद के वर्षों में घटती चली गई। 2020-21 में यह 14,07,769 हो गई, 2021-22 में 14,34,510 रही, 2022-23 में 13,83,732 पर आ गई और नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों शायद 2023-24 तक के शुरुआती आंकड़े या किसी खास पॉइंट तक के अनुसार यह 11,49,112 पर पहुँच गई। कुल मिलाकर यह पाँच वर्षों में लगभग 2.86 लाख की कमी को दर्शाता है।
हालांकि, 2021-22 के सत्र में छात्रों की संख्या में मामूली वृद्धि देखी गई थी, जिसका मुख्य कारण संभवतः कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा की उपलब्धता और अभिभावकों के बीच सुरक्षा की भावना हो सकती है। उस अवधि में कई निजी स्कूलों के छात्रों ने फीस और गुणवत्ता को लेकर सरकारी या केंद्रीय विद्यालयों का रुख किया था। लेकिन उसके बाद फिर से गिरावट शुरू हो गई है।
शिक्षामंत्री ने लोकसभा में यह भी बताया था कि केंद्रीय विद्यालयों में शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए नए दाखिलों की संख्या पिछले पांच साल में सबसे कम रही है। यह गिरावट शिक्षा विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि केंद्रीय विद्यालय आमतौर पर देश की सबसे प्रतिष्ठित सरकारी स्कूल श्रृंखलाओं में से एक माने जाते हैं।
मंत्रालय ने इस गिरावट के पीछे के विशिष्ट कारणों का विवरण नहीं दिया है। फिर भी, संभावित कारणों में माता-पिता की पसंद में बदलाव, निजी स्कूलों के प्रति आकर्षण, स्थानीय सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार या यहां तक कि स्थानांतरण नीतियों से संबंधित कुछ अनछुए कारक शामिल हो सकते हैं। इन आंकड़ों के गहरे विश्लेषण की आवश्यकता है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता, पहुंच और अभिभावकों की पसंद पर इसके प्रभाव को समझा जा सके।
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