"ज़मानत मिल गई, फिर भी जेल में क्यों?" - अब देरी करने पर खैर नहीं, सुप्रीम कोर्ट का आया बड़ा आदेश
किसी इंसान को देश की अदालत से ज़मानत मिल जाती है, यानी उसे जेल से आज़ाद करने का हुक्म मिल जाता है। लेकिन फिर भी वो शख्स कई दिनों या हफ्तों तक सलाखों के पीछे ही पड़ा रहता है। क्यों? क्योंकि निचली अदालतों में 'कागज़ी कार्रवाई' पूरी नहीं हो पाती।
यह हमारे देश के इंसाफ़ के निज़ाम की एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सख्त रुख अख्तियार किया है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल ही में इस मुद्दे पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है और देश के सभी उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों (ट्रायल कोर्ट) को बेहद सख्त और स्पष्ट निर्देश जारी किया है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का यह नया हुक्म?
सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल साफ लफ्ज़ों में कह दिया है:
"जैसे ही हम (सुप्रीम कोर्ट) किसी को ज़मानत का हुक्म दें, तो निचली अदालतों को बिना किसी देरी के फौरन उस पर अमल करना होगा। ज़मानत की शर्तें पूरी करवाने (bail bond) में जान-बूझकर देरी करना या नई-नई शर्तें लगाकर मामले को लटकाना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"
आसान भाषा में कहें तो, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब 'सबसे बड़े बॉस' ने हुक्म दे दिया, तो जूनियर्स को उसे फौरन मानना होगा, इसमें कोई बहानेबाज़ी नहीं चलेगी।
आखिर कोर्ट को इतना गुस्सा क्यों आया?
यह पूरा मामला तब गर्माया जब सुप्रीम कोर्ट के सामने एक केस आया, जिसमें एक शख्स को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने के 12 दिन बाद भी जेल से रिहा नहीं किया गया था! वो बेचारा ज़मानत के कागज़ लेकर एक अदालत से दूसरी अदालत के चक्कर काटता रहा।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "यह क्या हो रहा है? यह किसी व्यक्ति की आज़ादी के बुनियादी हक़ का उल्लंघन है। हम इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
आम आदमी के लिए इस फैसले का क्या मतलब है?
यह फैसला इंसाफ़ का इंतज़ार कर रहे हज़ारों लोगों के लिए उम्मीद की एक बहुत बड़ी किरण है:
- जेल से रिहाई होगी तेज़: अब उन कैदियों को ज़मानत मिलने के बाद जेल में अतिरिक्त दिन नहीं गुज़ारने पड़ेंगे, जिनके केस कागज़ी कार्रवाई में फंसे रहते हैं।
- अफसरशाही पर लगेगी लगाम: इससे निचली अदालतों और अफसरों की मनमानी पर रोक लगेगी, जो जान-बूझकर या लापरवाही की वजह से ज़मानत की प्रक्रिया में देरी करते थे।
- इंसाफ़ पर बढ़ेगा भरोसा: यह कदम दिखाता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत आम आदमी के हक़ों को लेकर कितनी संजीदा है। इससे लोगों का इंसाफ़ के निज़ाम पर भरोसा और मज़बूत होगा।
यह सिर्फ एक हुक्म नहीं है, बल्कि यह इस बात का इशारा है कि सुप्रीम कोर्ट इंसाफ़ की राह में आने वाली हर छोटी-बड़ी रुकावट को हटाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
--Advertisement--