तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित यूजीसी मसौदा विनियम 2025 का विरोध करते हुए इसे संघीय ढांचे और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन विनियमों के माध्यम से राज्यपालों को विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में व्यापक अधिकार दिए जा रहे हैं और गैर-शिक्षाविदों को इन पदों पर नियुक्त करने की अनुमति दी जा रही है, जो राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करने का प्रयास है।
स्टालिन का केंद्र पर आरोप: ‘अधिनायकवादी रवैया’
मुख्यमंत्री स्टालिन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा 6 जनवरी को जारी मसौदा विनियमों पर टिप्पणी करते हुए इसे “केंद्र की भाजपा सरकार का अधिनायकवादी कदम” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सत्ता को केंद्रीकृत करने और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने का प्रयास है।
स्टालिन ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा,”शिक्षा का नियंत्रण जनता द्वारा चुनी गई सरकार के पास होना चाहिए, न कि राज्यपालों के माध्यम से केंद्र सरकार के हाथों में। यूजीसी का यह कदम असंवैधानिक है और तमिलनाडु इसका कानूनी और राजनीतिक रूप से मुकाबला करेगा।”
यूजीसी मसौदा विनियम 2025 का उद्देश्य
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इन विनियमों को उच्च शिक्षा में नवाचार, समावेशिता और लचीलापन लाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि ये दिशानिर्देश शैक्षणिक उत्कृष्टता, शिक्षकों की सशक्तता और शैक्षिक मानकों को मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
तमिलनाडु की आपत्तियां
स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु, जो देश में उच्च शिक्षा में अग्रणी है और सर्वाधिक शीर्ष रैंकिंग वाले संस्थानों का घर है, इन विनियमों के जरिए अपनी संस्थागत स्वायत्तता खोने नहीं देगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह केंद्र सरकार की “राज्य सरकारों को दरकिनार करने और सत्ता केंद्रीकरण की साजिश” है।
मुख्यमंत्री ने केंद्र के इस कदम को संविधान के समवर्ती सूची के प्रावधानों का उल्लंघन बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिलनाडु किसी भी कीमत पर राज्य के अधिकारों और शिक्षा प्रणाली की स्वायत्तता की रक्षा करेगा।