बढ़ती तकनीक, उन्नत संचार प्रणाली, विज्ञान और विकास के इस युग में उपग्रहों की अंतरिक्ष में लगातार स्थापना से वहां मलबे की मात्रा लगातार बढ़ रही है। हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है क्योंकि यह अंतरिक्ष मलबा न केवल कक्षा में मौजूद उपग्रहों के लिए बल्कि हमारे पर्यावरण के लिए भी बहुत खतरनाक हो सकता है।
अंतरिक्ष का मलबा 17,500 मील प्रति घंटे की गति से यात्रा करता है, और 1 सेंटीमीटर से बड़े मलबे के लगभग 10 लाख टुकड़े होते हैं। हालाँकि, यह भी एक तथ्य है कि वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान उत्पन्न तीव्र गर्मी के कारण बड़ी मात्रा में मलबा जल जाता है लेकिन जो बचता है वह महासागरों और भूमि पर गिर जाता है।
आजकल अलग-अलग देशों द्वारा कई अंतरिक्ष अभियान चलाए जा रहे हैं क्योंकि विकसित और विकासशील देशों के बीच अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने और समझने की होड़ मची हुई है। पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष मलबे के 100 ट्रिलियन से अधिक अज्ञात टुकड़े हैं।
हालाँकि राष्ट्रपति ने 2030 तक भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को मलबा-मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की भी सराहना की, लेकिन अंतरिक्ष में मलबे की बढ़ती मात्रा पृथ्वी पर सभी जीवन को प्रभावित कर रही है, एक खतरे के रूप में उभर रही है
आज अमेरिका, चीन, रूस और भारत समेत कई देशों का मलबा अंतरिक्ष में मौजूद है। अगर हम यहां सिर्फ भारत की बात करें तो एक आंकड़े के मुताबिक भारत के पास 103 सक्रिय या निष्क्रिय अंतरिक्ष यान और 114 अंतरिक्ष मलबे वाली वस्तुएं हैं।
अंतरिक्ष मलबे से तात्पर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली कृत्रिम वस्तुओं से है जो वर्तमान में क्रियाशील अवस्था में नहीं हैं। इसे अंतरिक्ष कबाड़ या कक्षीय मलबा या अंतरिक्ष कबाड़ भी कहा जाता है। मलबे के सबसे छोटे टुकड़े (मिलीमीटर आकार का मलबा) से टकराव भी उपग्रहों को नष्ट कर सकता है। इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ कहा जाता है।
अंतरिक्ष पर्यावरण के खतरों से भारतीय अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशंस मैनेजमेंट’ लॉन्च किया गया है। भारत समेत दुनिया के विकसित और विकासशील देश अंतरिक्ष कचरे के प्रबंधन के लिए लगातार काम कर रहे हैं और आने वाले समय में हम इस दिशा में और बेहतर काम कर पाएंगे।