परिसीमन पर दक्षिण बनाम उत्तर की बहस तेज, एम.के. स्टालिन ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई

Tamil nadu cm mk stalin deputy

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन परिसीमन के मुद्दे पर गंभीर रुख अपनाए हुए हैं और बीजेपी सरकार पर दक्षिण विरोधी नीति अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका मानना है कि यदि लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया गया, तो दक्षिणी राज्यों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसी मुद्दे को लेकर रविवार को चेन्नई में विपक्षी दलों की बैठक आयोजित की गई, जिसमें ओडिशा, पंजाब और दक्षिण भारतीय राज्यों के कांग्रेस नेताओं ने भाग लिया। हालांकि, हिंदी पट्टी के दलों और महाराष्ट्र की पार्टियों ने इस बैठक से दूरी बना ली, जबकि टीएमसी ने भी इसमें हिस्सा नहीं लिया।

परिसीमन से दक्षिणी राज्यों को होगा नुकसान

परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। 2026 की जनगणना के बाद लोकसभा सीटों के पुनर्गठन की प्रक्रिया होनी है, जिससे दक्षिण के राज्यों को सीटों का नुकसान हो सकता है। डीएमके द्वारा आयोजित बैठक में उत्तर भारतीय विपक्षी दलों को आमंत्रित नहीं किया गया था, जिसमें सपा, आरजेडी, शिवसेना और एनसीपी शामिल थे।

1977 के लोकसभा चुनावों में औसतन 10.11 लाख लोगों पर एक सांसद चुना जाता था, लेकिन परिसीमन के बाद यह संख्या बढ़ने की संभावना है। अनुमान है कि यदि 15 लाख की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है, तो पश्चिम बंगाल की सीटें 42 से बढ़कर 66 हो सकती हैं, जबकि 20 लाख की जनसंख्या के आधार पर यह संख्या 50 होगी।

उत्तर को मिलेगा लाभ, दक्षिण की सीटें स्थिर रहेंगी

परिसीमन से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों को बड़ा फायदा होगा। यदि 20 लाख की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है, तो लोकसभा की सीटें 543 से बढ़कर 707 हो सकती हैं। इस गणना के अनुसार, तमिलनाडु की सीटें 39 पर ही स्थिर रहेंगी, जबकि केरल को दो सीटों का नुकसान होगा। वहीं, यदि 15 लाख की जनसंख्या को आधार बनाया जाता है, तो कुल लोकसभा सीटें 942 तक पहुंच सकती हैं, जिससे उत्तर भारतीय राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी।

परिसीमन को लेकर टीएमसी और सपा जैसी पार्टियों ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। सपा का जनाधार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में है, जहां परिसीमन के बाद सीटों की संख्या में वृद्धि होगी। ऐसे में विपक्ष इस मुद्दे पर पूरी तरह से एकजुट नहीं दिख रहा है, जिससे आगामी राजनीतिक परिदृश्य में इस बहस के और तेज होने की संभावना है।